परम पूज्य गुरुदेव श्रद्धेय श्री कानमुनिजी म.सा. का,संथारासहित देवलोकगमन
एक उत्कृष्ट संयमी, वरिष्ट संत का अवसान,देवलोकगमन ,जिनशासन के लिए बहुत बड़ी क्षति है। जिसकी पूर्ति वर्तमान समय में संभव नहीं । पूज्य कठोर तपस्वी संत पूश्रीकान मुनिजीमसा, जिन्होंने अपने 80 वर्ष के संयम पर्याय ,(संवत 2001 मे मात्र 11वर्ष की आयु में दीक्षित) , लंबे संयमकाल में बगैर किसी दोष के,सख्त संयम का, संपूर्ण जीवन मे पालन किया , जिनशासन के लिए समर्पित किया । वे स्थानकवासी समाज के वरिष्ठतम संत, दीक्षा पर्याय मे वरिष्ठतम , महान संत का जन्मदिवस और देवलोक दिवस एक ही दिन । अपने जीवन में जिनशासन की जो सेवा की है, जो प्रतिष्ठा बनाई है ,वह हमेशा हमेशा के लिए स्मरणीय रहेगी। सबसे पहले उन्होने शिविर के माध्यम से , शिविर के आधार पर उन्होंने हजारों हजारों, लाखों, श्रावक श्राविकाओ को जिनशासन का श्रेष्ठ ज्ञान , अध्ययन कराया । जिसमें सम्भंव हो 300-350 श्रावक श्राविकाओ ने संयम भी लिया, चाहे वह किसी संप्रदाय में हो किंतु लाभ तो जिनशासन का ही हुआ । प्रत्यक्ष प्रमाण तो यह है कि पूज्यश्रीकानमुनिजीमसा के आज्ञानुवर्ती पूज्य संत -साध्वी मंडल में भी एक से एक बढ़कर कोहिनूर हीरे है । यह उनके परिश्रम और साधना का एक प्रमाण स्पष्ट दिखता है । वर्षों तक एकांतर उपवास तपस्या और कठोरता के साथ भगवान के बताए मार्ग पर चलकर , चला कर उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि ,भगवान महावीर के बताए मार्ग से श्रेष्ठ मार्ग हो ही नहीं सकता है जिसका अक्षरशः पालन किया करवाया। दीक्षा पर्याय में सबसे अधिक, स्थानकवासी संप्रदाय में उनका सर्वोच्च स्थान आज है, निश्चित ही उनके गुणो की व्याख्या करना मुश्किल है ।
शत शत कोटिश नमनः
अशोक संघवी , पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष,अखिल भारतीय धर्मदास जैन युवा संगठन ,श्रीसंघ बदनावर।