समृद्ध समाज की जिम्मेदारी – कमजोर भाईयों के लिए आगे आइए

🧘‍♂️ जैन समाज – एक चिंतन 🧘‍♀️

🪔 जैन समाज एक समृद्ध, संस्कारी और दानशील समाज के रूप में पूरे भारत में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। यह समाज 🐂 गौशालाओं, 🎓 शिक्षण संस्थानों, 🏥 स्वास्थ्य सेवाओं, 🤝 ट्रस्टों, 🏨 धर्मशालाओं एवं अनेक लोकसेवाओं में अग्रणी भूमिका निभाता है।

📊 आंकड़ों के अनुसार, आयकर योगदान में भी जैन समाज का हिस्सा अत्यंत महत्वपूर्ण है — कई स्रोतों के अनुसार, देश के कुल आयकर में 20% से अधिक भागीदारी केवल जैन समाज की है।

😔 इतनी समृद्धि के बावजूद, यह अत्यंत पीड़ादायक है कि जैन समाज की लगभग 5% आबादी शहरों में और 25% से अधिक गांवों में दो वक्त के भोजन के लिए संघर्ष कर रही है। यह स्थिति हमारे लिए आत्मचिंतन का विषय है।

🔍 पारसी समाज, जो कि जैन समाज की ही तरह एक समृद्ध और अल्पसंख्यक समुदाय है, ने वर्ष 2012 में अपने आर्थिक रूप से कमजोर बंधुओं के लिए एक प्रभावी योजना बनाई। 📝 न्यायालय में प्रस्तुत परिभाषा के अनुसार, जिन पारसी परिवारों की मासिक आय ₹90,000 से कम थी, उन्हें आर्थिक दृष्टि से कमजोर माना गया।

💡 यह उदाहरण हमें भी प्रेरणा देता है कि जैन समाज को भी ऐसी व्यावहारिक योजना बनानी चाहिए:

1. 📌 ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ की परिभाषा तय की जाए – जैसे पारसी समाज ने की।
2. 📋 सहायता के लिए एक पारदर्शी योजना तैयार की जाए जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी हो।
3. 💸 आय सीमा निर्धारित की जाए।
4. 🏘️ स्थानीय स्तर पर समितियाँ गठित की जाएं जो वास्तविक ज़रूरतमंदों की पहचान कर सकें।
5. 🧎‍♂️🧎‍♀️ संतों, मुनियों और साधु-साध्वियों से निवेदन है कि वे समाज के सक्षम लोगों को इस दिशा में प्रेरित करें।

🙏 यदि हमारा अपना भाई भूखा सोता है तो हमारा कोई भी तपस्या, अपूर्ण है, और कोई भी दान अधम है।

🤝 अतः आइए, स्वबंधु सेवा को एक जनआंदोलन बनाएं और समाज के भीतर “सशक्त से निर्बल की ओर” एक संगठित सहायता प्रणाली विकसित करें। यही धर्म का सच्चा पालन हो सकता है।

✍️ सुगालचंद जैन, चेन्नई
27-5-25

🕊 अहिंसा व्रत का पालन करने वाले का कोई शत्रु नहीं होता।