जैन सिद्धांत में कर्म की त्रिविध भूमिका: करना, कराना और अनुमोदन करना

जैन सिद्धांत के अनुसार
करें, करावे और अनुमोदन करें।
तीनों कार्य के करने वालों को समान फल प्राप्त होता है।

इसी परिप्रेक्ष्य में पोरवाल समाज की व्यवस्था में श्री सागोदिया तीर्थ जो कि मात्र हमारे समाज का नहीं रतलाम शहर की आस्था का केंद्र था।

हमारे श्री सागोदिया तीर्थ पर 370 वर्ष से प्राचीन दादा आदिनाथ के जिनालय की प्रतिमा का सूर्योदय से पूर्व उत्थापन करना एवं जिनालय का बुलडोजर से तोडा जाना एक मार्मिक हृदय को कचोटने वाली ऐसी घटना है, जिसका हमें ताउम्र मलाल रहेगा। कि हम इसका संरक्षण नहीं कर पाए।

हमारे समाज के चंद ट्रस्ट के लोगों ने अपने निजी हित को क्रियान्वित करने के लिए ऐसा दुष्कर्म किया है। जिसमें संतो ने भी अपना अक्षम्य योगदान दिया है।

साथ ही वे लोग जो श्रावक हैं या संत जिन्होंने उनका सहयोग कर और बिना समाज की अनुमति जिनालय को तोड़ने में एवं समाज के विभाजन में अपना योगदान दिया।

उनके नाम भी इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से तो नहीं ही लिखे जाएंगे।

इस दुष्कर्म का पाप उन्हें उनके जीवन भर कचोटता रहेगा। साथ ही उन्हें समाज से नीची नज़र रख अपने इस महापाप को स्वीकार करना ही होगा।