🎤 जैन मंदिर पर कई जगह अनाधिकृत कब्जा क्यू होता है ?
🎤 जैन मंदिर पर कई जगह अनाधिकृत कब्जा क्यू होता है ?
🚦🚧 जानिए और सोचे कैसे देवद्रव्य हमारे विनाश और पतन का कारण बनेगा 🚧🚦
यह एक इतिहासिक सत्य है जो बार बार दुहराया जा रहा है, इसकी वजह है गुरुओं और समाज के ठेकेदारों की गलत सोच 🤔
कई लोग कहते है की तीर्थो पर डोली वालो को काम न दो, तलहटी पर चाट पापड़ी मत खाओ, तीर्थ के आसपास की दुकानों से कुछ नही खरीदे, यह सब भी ठीक है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती और वजह हम खुद है : जाने कैसे हमारा देवद्रव्य ही हमारे विनाश का कारण बनेगा 🤔😭
जिस दिन हम सिर्फ देवद्रव्य का उपयोग, पत्थरों मंदिरो के कारीगर मुस्लमान और हिंदू, को देना बंद करेंगे तो तीर्थो पर कब्जा बंद होगा। उदाहरण के तौर पर पालीताना में कई हजारों करोड़ रुपए के मंदिर बनाने से सिर्फ कारीगरों जो मुसलमान है ज्यादातर उनको ही फायदा हुआ है। पालीताना शहर में ३०% नए मुसलमान परिवार आए है और इसी तरह कई और लोग, वह भी हमारे देवद्रव्य से। किसी साधर्मिक को उन अरबों रुपए से कोई फायदा नही हुआ।
🥊 गुरु भगवंत कहते है कि देवद्रव्य सिर्फ भगवान के काम आना चाहिए, लेकिन यही देव द्रव्य हमारे विनाश का कारण बनेगा, हमारे अस्तित्व और समाज को मारेगा अगर हमने इसे जैन समाज के उत्थान में नही लगाया तो।
जिन शासन बचाना है तो देवद्रव्य को सिर्फ जैन परिवारों के लिए उपयोग करो। नौकरी सिर्फ जैनों को दो, भवन और मंदिर में, पुजारी का काम सिर्फ जैन साधर्मिको को दो, नही तो आने वाले सालो में सब कुछ चला जायेगा। मंदिर और संघ यात्रा की फिजूल खर्ची को बचाकर जैन संस्कार की स्कूल कॉलेज बनाओ, तो जैन पीढ़ी बचेगी, तो जैन शासन भी बचेगा। जैन मंदिर भी बनाओ जितने जरूरत है उतने, और उसी परिसर में एक स्कूल भी या रोजगार कौशल कार्य या वृद्धाश्रम।
नौकरी में प्राथमिकता सिर्फ जैनों को दे चाहे दुगुनी पगार देनी पड़े।
अनाप शनाप जैन मंदिर तो बना दोगे लेकिन जैन नही बचेंगे तो कौन संभालेगा? इसलिए जो जैन समाज के अरबों रुपए ट्रस्टियों के पास सड़ रहे है या मंदिर बनाने से सिर्फ मुसलमान या हिंदू कारीगरों को फायदा हो, उसको रोको, तो जैन मंदिर के पास कोई ऐसे परिवार नही पनपेंगे जो हमारे तीर्थो पर कब्जा करे। अजैन से चाट पकौड़ी या खरीदी में तो कुछ लाखो जाते होंगे लेकिन जहां जरूरत नही वहां मंदिर बनाने से अरबों रुपए सिर्फ दूसरे लोगो को जा रहे है। जैन समाज के लोगो का उसमे कोई भला नही होगा, हां चार दिन मिठाई खा कर, जिन शासन की जय कर लेंगे। और ऐसे खर्चे से ना ही आने वाली पीढ़ी का फायदा। 🙏🙏
नोट: आज हजारों जैन परिवार, बिना नौकरी के, बिना रोजी रोटी के तरस रहे है। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब है, लेकिन भाई हमे तो नाम के लिए संघ, अनुष्ठानों, वरगोडो, चातुर्मास और मंदिरो में ही खर्च करने है। 🙏🙏
क्या कॉन्वेंट या ईसाई स्कूल में पढ़ने वाली अगली पीढ़ी आने वाले समय में जैन मंदिर संभालेगी या साधुओं को गोचरी देगी? करोड़ों की बोली लेने वालो के बच्चे ईसाई स्कूल में पढ़ते है फिर जैन साधुओं को भी शायद हिंदू बाबाओं की तरह आटे दाल की भीख मांगने की नौबत न आ जाए।
😂 In short Dev dravya is only supporting and economically helping non-jains who are going to destroy, encroach and hijack our temples whereas our Sadhrmik will be suffering financially as usual because of wrong path chosen by trustees and Sadhus