।।जैन दर्शन के चारों संप्रदायों का संगठन ।।
Part।।.भाग ।।
मैंने वॉटसेपर जैन दर्शन के “ चारों संप्रदायों का संघठन “बनाने के लिए संदेश साजा किया था। उसके बाद मुजे बचपन में पढी /सुनी हुई कहानी याद आगई, जिसे मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूँ।
एक शहर में एक परिवार रहता था
परिवार में माता-पिता के अलावा चार,
लड़के एवं दो लडकिया थी। चारों लड़कों में आपस ‘में नहीं’ बैठती थी। छोटी छोटी बातों को लेकर अक्सर कहाँ सुनी होजाती थी। बुजुर्ग माता पिता परेशान थे। उनको समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें।कैसे समझाये
कि एकता में ही ताक़त हैं। एक होकर
रहेंगे तो कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकेगा।
एक दिन उन्हें कुछ ध्यान में आया और
उन्होंने चारों लड़को को अपने पास बुलाया ।उन्हें चार लकड़ीयों को बांध कर दि और तोड़ने के लिए कहाँ। बहुत ताकत लगाने पर भी उन्हें तोड़ न सके।सब ने अपनी असमर्थता व्यक्त कि। फिरबुजर्ग ने चारों लकड़ियों के पेकेट को खोल कर एक एक लकड़ी दी। चारों भाइयों ने तुरन्त उनको तोड़ दिया। बुजुर्ग ने इस प्रयोग के माध्यम
से उन्हें समझाया। चारों भाइयों ने
आपस में लड़ना – झगडना छोड़ दिया एवं प्रेम से रहने लगे।
मेरे मन मै सहज ही प्रश्न उठा क्या एक करोड जैन श्रावकों में ऐसे व्यक्तित्व का धनी कोई श्रावक नहीं है जिसका सब आदर करें ?क्या हमारे 18000 साधु साध्वी वृन्द में किसी का ऐसा व्यक्तित्व नहीं है जो सब को एक जगह बैठाकर समझा सके? मेरा मानना है कि जैन दर्शन के चारो सम्प्रदायों का आगम में ,महावर्तो में , एवं मान्यताओं में कोई विशेष मतभेद नहीं है। हमारा मत भेद क्रिया में हैं। क्रिया धर्म नहीं हैं ।ये सद्गति तक पहुँचने का रास्ता है, एवं रास्ते अलग अलग हो सकते
है, परन्तु हमारे विचार एक है। फिर क्यों हम झूठे अहम् को लेकर सम्प्रदायवाद को प्राथिमकता देते है एवम् जैन दर्शन को परे रखते है। विचार मन्थन किजीए ।सब अपनी अपनी क्रिया के साथ अपने
अपने मार्ग पर चले। लेकिन सब जैन
एक होकर रहै। जैन दर्शन को जन
जन दर्शन बनावे। सम्प्रदाय तो
आप से आप बढ़ जायेगी। जैन दर्शन
विद्यमान रहेगा तो ही, सम्प्रदायें बचेंगी,
साधु-सन्त बचेंगे।श्रावक बचेंगे । कृपया चिन्तन मनन करें।
सुगालचन्द जैन,
चेन्नई – 21.08.2024,
A long journey begins with a single first step.