जैन समाज है जिम्मेदार।

हमारे द्वारा संचालित ज्ञान वाटिकाएं कहां है? क्यूं हम हमारे बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ज्ञान नहीं दे रहे हैं।आजकल माता पिता को भी धार्मिक रूचि नहीं है तो संतानों में कहां से आएगी।बस बच्चे अच्छे अंक लेकर आए उसके अलावा कोई मतलब नहीं परिवार वालों को। हमें हमारे बच्चे के लिए जैन बाहुल्य क्षेत्र में कम से कम हमारे द्वारा संचालित विद्यालयों की स्थापना करनी ही होगी।साल में केवल महावीर जन्म कल्याणक,पर्युषण अथवा दस लक्षण के दिनों में जैन बनने से कुछ नहीं होगा। जहां जिनालय वहां विद्यालय होना ही चाहिए।