।।🌹दान का असली उद्देश्य: सेवा या प्रसिद्धि ?🌹।।

हमें विभिन्न धर्मों से सीख लेनी चाहिए। इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध आदि धर्मों के धर्मस्थलों पर ध्यान दें—इनमें कहीं भी किसी व्यक्तिगत या पारिवारिक दानदाता का नाम अंकित नहीं होता हैं । यही नहीं, उनके द्वारा संचालित अधिकांश शिक्षण, स्वास्थ्य और सामाजिक संस्थानों में भी दानदाता का नाम दर्ज नहीं किया जाता हैं । इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंदों की सेवा होता है, न कि व्यक्तिगत पहचान बनाना।
इसके विपरीत, जैन समाज द्वारा बनाए गए मंदिर, उपाश्रय, स्थानक, भवन, शिक्षण , स्वास्थ्य एवं सामाजिक संस्थानों में हर जगह दानदाता का नाम अंकित किया जाता है। कदम-कदम पर लगे नामपट्ट देखकर दानदाता स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है। लेकिन इस गर्व के भाव में कहीं न कहीं यह भूल जाता है कि उसने दान किस उद्देश्य से दिया था।
आज, जैन समाज द्वारा स्थापित अधिकांश शिक्षण संस्थान जरूरतमंद समाजबंधुओं के लिए सुलभ नहीं होते हैं । आर्थिक रूप से कमजोर लोग इनसे वंचित रह जाते हैं और दर-दर भटकने को मजबूर होते हैं। वहीं, दानदाता भी अपने धन के सही उपयोग पर सवाल नहीं उठाते, क्योंकि उन्हें तो अपने दान के बदले ‘नाम’ मिल चुका होता है।
इसलिए, हमें यह विचार करना चाहिए कि दान का असली उद्देश्य क्या हैं?सेवा या प्रसिद्धि?हमें दान देते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सही उद्देश्य और सही जरूरतमंद तक पहुँचे। केवल नाम के लिए दान देना उस सेवा भावना के मूल उद्देश्य को नष्ट कर देता है, जिससे समाज को वास्तविक लाभ मिल सकता था। अतः, दान को सच्चे अर्थों में सेवा का रूप दें ।
सुगाल चंद जैन,चेन्नई
4-3-25.