कर्म की हार-धर्म की जीत
💎श्री जैन स्वाध्याय संघ, अहमदाबाद-रतलाम💎
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🌅कर्म की हार-धर्म की जीत🌅
(भीमसेन चरित्र आधारित प्रवचन)
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भाग – 117
🪟हरिषेण की प्रव्रज्या :
पू. धर्मघोषसूरीश्वरजी महाराजा की देशना पूर्ण होती है। वह सभा वर्तमान की सभा जैसी नहीं थी कि देशना खत्म हुई तो बस उठे और चल दिए। देशना पूर्ण होने पर हरिषेण खड़ा होता है और कहता है कि मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। मैं इस संसार से थक गया हूँ। मुझे दीक्षा प्रदान कीजिए। मैं बड़े भाई की अनुमति लेकर आता हूँ। तब गुरुभगवंत क्या कहते हैं? “प्रतिबन्धं मा कुरु” इसका अर्थ यह है कि वर्षों के संबंध के कारण पुनः इसमें फँस मत जाना, पुनः राग के बंधनों में बंध मत जाना। भीमसेन यह बात सुनकर हिल जाता है। वह विचार करता है कि इतनी इतनी आपत्तियों में भी मुझे कभी संसार छोड़ने का विचार नहीं आया और इसको इतनी संपत्ति-सुख सामग्रियों के बीच रहकर भी संसारत्याग की भावना जागृत हो गई ! सचमुच यह धन्य है। परन्तु भाई के प्रति स्नेह होने के कारण वह कहता है, हम इतने वर्षों में अभी तो मिले हैं, थोड़ा समय साथ रहकर फिर दीक्षा ले लेना। हरिषेण कहता है नहीं भैय्या! अब मैं इस संसार में नहीं रह सकता। छोटे भाई की प्रबल भावना का मान रखते हुए भीमसेन उसे अनुज्ञा प्रदान करता है। हरिषेण गुरुभगवंत के पास दीक्षा अंगीकार कर उनके साथ विहार करता है। अध्ययन में तल्लीन बने विचक्षण हरिषेण मुनि थोड़े समय में ही ११ अंग के ज्ञाता बन गए। उनकी योग्यता के अनुरूप गुरुभगवंत ने उन्हें मुनिपद से सूरिपद पर आरूढ़ किया। कुछ समय पश्चात गुरुभगवंत साधना द्वारा केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष सिधाए। यह सुनकर हमें ईर्ष्या होनी चाहिए कि उन लोगों को केवलज्ञान इतनी आसानी से हो जाता था, तो हमको क्यों नहीं होता है? निश्चित ही हमारी कमनसीबी है कि हमारा जन्म इस काल में हुआ है। फिर भी कलिकाल में प्रभु मिले हैं, प्रभु का शासन मिला है तो इससे दूर तो नहीं रहना है। श्री हरिषेणसूरिजी विचरण करते-करते एक बार राजगृही नगरी में पधारते हैं। भीमसेन बड़े सामैया (वरघोड़े) के साथ वन्दन करने जाता है। देशना प्रारंभ होती है। उस काल में देशना के अंत में कोई न कोई तो धर्म अंगीकार करता ही था। वहाँ भीमसेन तथा सुशीला बारह व्रत अंगीकार करते हैं तथा श्रावकजीवन को स्वीकार करते हैं।
👉 क्रमशः ….
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🖌प्रवचनकार – अध्यात्मसम्राट परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय योगतिलकसूरीश्वरजी म.सा.
📚संकलन – जैन नीतेश एस. बोहरा, रतलाम
सहायक- जैन उत्तम पी. कानूंगा, अहमदाबाद
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