मार्गदर्शक प्रवचन
18 जनवरी गुड़गांव सेक्टर 14
जो है वह आज है
जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र जी महाराज साहब
मंजिल बहुत है अफसाने भी बहुत हैं
जिंदगी की राह में इम्तिहान भी बहुत है
मत करो दुख उसका उसका जो मिला है
दुनिया में खुश रहने के बहाने बहुत हैं।
मंजिल कल मिले या ना मिले, हम आज दुखी हैं। जो आज के लिए जीता है, वह सुखी है।
पच्चीस बोल के थोकडे में 6 प्रकार के द्रव्य आते हैं।
उसमें धर्मास्तिकाय के तीन भेद बतलाते हैं।
स्कंध, देश, प्रदेश।
इसी तरह अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय के भी तीन-तीन भेद हैं, लेकिन काल, द्रव्य का कोई भेद नहीं है। काल, अखंड है।
भूतकाल जा चुका है, अतः वह असत् है, भविष्य का पता नहीं अतः वह भी असत् है, जो है वह वर्तमान है।
वर्तमान वर्ते सदा ते ज्ञानी जग माय।
वर्तमान को समझकर सम्यक् प्रकार से चलने वाला ही सच्चा ज्ञानी है।
पशु, पक्षी सुखी क्यों है? क्योंकि वह आज के लिए जीते हैं। जबकि इंसान कल के लिए जीता है। या तो बीते जीवन का रोना रोता है या भविष्य के लिए परेशान रहता है।
जबकि जो है वह आज है।
आप लोग बुढ़ापे की चिंता करते हैं, उसके लिए सेविंग करते हो, लेकिन बुढ़ापा आएगा या नहीं उसकी गारंटी नहीं है।
पर अगले भव जरूर आएगा, उसकी गारंटी है। इसलिए बुढ़ापे के लिए सेविंग करना जरूरी नहीं है, लेकिन अगले भव के लिए सेविंग जरूरी है।
अतः दूसरों को किया गया सहयोग आपके उभय लोक में काम आएगा।
हमने बहुत वर्ष पहले एक घर में देखा कि लड़के की चाह में लड़की ही लड़की होती जा रही थी। चार लड़कियां हो गई पर पिता को कोई चिंता नहीं। उसका कहना है कि अभी मैं कमा रहा हूं, चार लड़कियों के नाम पर अलग-अलग एफ डी करा दी है। जब यह 20 वर्ष की होगीं, तब इन्हें 25-25 लाख रुपए मिल जाएंगे।। मैं रहूं या ना रहूं, इनका काम हो जाएगा।
जैसे यह सोचा जाता है वैसे ही यह भी सोचो कि मैं रहूं या ना रहूं, जहां भी रहूं, अच्छे से रहूं, ऐसा काम करूंगा।
वैसे भी बेटियां आप कर्मी होती हैं, बाप कर्मी नहीं। सती मैना सुंदरी की उसके पिता ने क्रोध में आकर एक कोढ़ी से शादी कर दी। दूसरी बेटी की शादी विशाल राज्य के राजकुमार के साथ की, लेकिन कोढ़ी तो ठीक होकर अनेक राज्यों का मालिक श्रीपाल कुमार बन गया और दूसरी बेटी दर-दर भटकने वाली नृत्यकी बन गई। यह है कर्मों की दशा।
अतः किसी को धन से नहीं, धर्म से, पुण्य से परखा जाए।
जो आपको मिला वो किसी से कम नहीं मिला। अंगूठे की रेखा किसी से नहीं मिलती। अतः अपने आपको अलग समझो, अपने आप को अलग परखो। दूसरों से अपनी तुलना न कर, अपने आप में जीना सीखो।
एक कुत्ता नदी के तट पर घूम रहा था। तट के निकट खड़े एक महावृक्ष की प्रतिच्छाया नदी के जल में उभर रही थी। उस वृक्ष की शाखा पर किसी ने वस्त्र में लपेटकर रोटी बांध दी थी। कुत्ते ने उस रोटी की प्रतिच्छाया नदी में देखी तो उसका मन उसे पाने के लिए मचल उठा और उसने नदी में छलांग लगा दी।
कुत्ते को रोटी तो न मिली, पर वह नदी की तीव्र जलधारा में अवश्य बह गया और मर गया। काश! वह कुत्ता ऊपर देख लेता तो उसे मृत्यु का ग्रास न बनना पड़ता।
इसी तरह परमात्मा की भक्ति करना सीखों। दुनियां दारी में ही उलझे रहोगे तो कुछ नहीं मिलेगा। जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ेगा। पहले जब टी.वी. नहीं चलता तो बच्चे ऊपर एंटीना ठीक करते थे।
इसी तरह जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए पहले परम सत्ता से जुड़ने का प्रयास करें।
लोग कहते हैं कि परमात्मा का नाम लेने से क्या होता है? सोचने वाली बात यह है कि एक व्यक्ति गहरी नींद में सोया है, उसका नाम अनुज है, उसे जगाना है तो लोग अनुज, अनुज नाम बोलते हैं जब 20 से 25 बार जोर-जोर से नाम बोलोगे तो उसके कान में शब्द जाकर उसकी नींद से टकराकर उसे जगा देते हैं। वैसे ही हम जब 108 बार परमात्मा का नाम लेते हैं तो अपनी आत्मा भी जगने लगती है।
आप बताओ आप परतंत्र है या स्वतंत्र ।
आप कहेंगे कि स्वतंत्र। लेकिन एक उदाहरण सुनिए।
स्वामी विवेकानन्द अपने कुछ शिष्यों के साथ टहलने निकले। उन्होंने देखा – एक व्यक्ति एक गाय के गले में रस्सी बांधे हुए उसे लगभग खींचते हुए ले जा रहा है। गाय उसके साथ चलना नहीं चाह रही है फिर भी वह उसे खींच रहा था। शिष्यों को सीख देने की दृष्टि से स्वामी विवेकानन्द बोले- “बताओ, इस गाय और व्यक्ति में बंधा कौन है?”
शिष्यों ने तपाक से उत्तर दिया “स्वामी जी! यह तो स्पष्ट दीख रहा है कि गाय ही बंधी है और यह व्यक्ति इसे खींच रहा है।” स्वामी विवेकानन्द ने चुपके से गाय का रस्सा चाकू से काट दिया। गाय स्वतंत्र होकर पीछे की ओर भाग चली और वह व्यक्ति गाय के पीछे-पीछे दौड़ने लगा, पुनः उसे पकड़ने के लिए।
विवेकानन्द बोले- “कहो, कौन बंधा है?”
शिष्य समझ चुके थे कि वह आदमी ही बंधा है तभी तो गाय के पीछे-पीछे दौड़ रहा है। स्वामी विवेकानन्द बोले “शिष्यों ! बन्धन दो प्रकार के हैं- स्थूल और सूक्ष्म। स्थूल बन्धन दिखाई देते हैं। उन्हें तोड़ डालना विल्कुल कठिन नहीं होता है। दूसरी प्रकार के वे सूक्ष्म बन्धन हैं जो आंखों से नहीं दिखते हैं। वे बन्धन हैं लोभ और मोह के। इन सूक्ष्म बन्धनों को तोड़ना और इनका पार पाना अतिकठिन है।
अतः भीतर का बंधन, जीव को संसार में भटकाता है। मालिक वही हो सकता है जिसे नौकर से लेकर मालिक तक के काम आते हों।
मालिक, नौकर के भरोसे नहीं, बल्कि नौकर, मालिक के भरोसे हो।
यह तभी संभव है कि खाली टाइम में मालिक, स्टाफ के हर आदमी का काम करना सीखे।
भगवान महावीर ने स्वावलंबन का संदेश दिया है।
हम किसी के सहारे नहीं, अपने सहारे चलें। सहारा, इंसान का हो या सत्ता, संपत्ति का। सहारा, सहारा ही है वह परतंत्रता है।
अब्राहम लिंकन का नाम आज भी अमेरिका में आदर्श से लिया जाता है। जब वो राष्ट्रपति बनने के बाद, संसद में जा रहे थे। रास्ते में कीचड़ में फंसे सूअर को देखा, उन्हें दया आई। स्वयं उतरे सूअर को बाहर निकाला, ड्रेस खराब हो गई। पर ड्रेस, बदलने में संसद का समय, व्यर्थ हो सकता था। अतः वो इसी ड्रेस में संसद पहुंच गए, पहले देश का काम किया। उसके बाद ड्रेस बदली।
इतनी जीव दया तो हिंदुस्तान में जीव दया प्रेमियों में भी जल्दी से नहीं मिलेगी।
जो भी मिला है उसे प्रसन्नता से अपनाना सीखो।
जीत और हर आपकी सोच पर निर्भर है,
मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है।
अतः संकल्प पक्का रखो, पुरुषार्थ भी करो और सत्कर्म करके भाग्य को भी अच्छा बनाइए।
धर्म प्रभावना
17 जनवरी को ही नररत्न श्री चंद्रपाल जी जैन के निवास स्थल पर पधारे। 18 जनवरी का प्रवचन यहीं हुआ। आपके तीनों पुत्र प्रतुल जी, पारुल जी, अनुज जी पुत्रवधुएं संगीता जी, मनीषा जी, रितु जी आदि सारा परिवार धर्म प्रेमी है। प्रवचन देकर आचार्य प्रवर गुड़गांव सेक्टर 14 के धर्म स्थानक पधार गए हैं।
प्रधान श्री प्रेमचंद जी जैन आदि ने अगुवानी की।
19 जनवरी रविवार का प्रवचन भी यहीं होना घोषित है।
श्री अरिहंतमार्गी जैन महासंघ सदा जयवंत हों