जैन संस्कृति : सुझाव और सराहना

🌹।।जैन संस्कृति : सुझाव और सराहना।।🌹
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष हो रहा है कि जैनम फाउंडेशन, यमुना विहार, दिल्ली सराक जाति के श्रावकों की घर वापसी के लिए सराहनीय कार्य कर रहा है। मैं उनके प्रयासों की प्रशंसा करता हूं और अनुमोदन करता हूं। इसके साथ ही, संस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत करता हूं।

1. मंदिर निर्माण पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं। मंदिर अवश्य बनाएं, लेकिन “भव्यता की होड़” से बचें। सादगी और आध्यात्मिकता पर ध्यान दें।
2. मंदिर के निकट एक स्कूल (LKG से XII तक) स्थापित करें।
आर्थिक रूप से कमजोर जैन परिवारों के बच्चों से केवल नाममात्र की फीस ली जाए। जो जन्म से जैन नहीं हैं लेकिन कर्म से जैन हैं और जिनेश्वर प्रभु में श्रद्धा रखते हैं, उन्हें भी विशेष छूट प्रदान की जाए।
3. हर स्कूल में दो स्थानीय भाषाओं में निपुण जैन विद्वान या अध्यापक नियुक्त करें।
इन अध्यापकों का कार्य बच्चों को LKG से ही जैन दर्शन और नैतिक कहानियों से परिचित कराना हो। यह क्रम XII कक्षा तक जारी रहे।
4. प्रत्येक कक्षा में प्रतिदिन 15 मिनट का ध्यान कराया जाए। साथ ही, 5 मिनट छात्रों को ध्यान के लाभ के बारे में बताया जाए।
इससे विद्यार्थियों की जीवनशैली जैन मूल्यों पर आधारित होगी, जो उनके न केवल नैतिक बल्कि शांतिपूर्ण जीवन जीने में सहायक बनेगी।
5. जैन समाज द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थानों को समाज के हित में काम करना चाहिए। इन्हें व्यापारिक केंद्र न बनाया जाए।
जैन समाज के हर शिक्षण संस्थान से यह अपेक्षा की जाती है कि वे जैन संस्कृति और दर्शन के मूल सिद्धांतों पर आधारित शिक्षा प्रदान करें। इससे समाज में शांति व सद्भाव स्थापित होगा।

संदेश:
“जो लालच और क्रोध को जीत लेता है, वही सच्चा सुख प्राप्त करता है।”
।।महावीर तेरा नाम जपने से सोया शौर्य जग जाये।।

सुगालचंद जैन, चेन्नई
19-1-25