विद्याधर जी का ध्यान सामायिक स्वाध्याय

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विद्याधर जी का ध्यान सामायिक स्वाध्याय 📚

जब विद्याधर नौ वर्ष के थे तब अकेले कलबसदि (छोटा मंदिर) चले जाते थे। वहां जाकर प्रतिदिन शाम को ध्यान किया करते थे। जब तेरह वर्ष के हुए तो दोड्डबसदि (बड़ा जैन पंचायती मंदिर) जाते और वहां पर स्वाध्याय सुनने बैठ जाते थे। कभी-कभी शिखर बसदि (जमींदारों का जैन मंदिर) में भी जाते थे।

14-15 वर्ष की उम्र में विद्याधर दोड्डबसदि में सभी को स्वाध्याय कराने लगे थे। भरतेश वैभव, रत्नाकर शतक सभी को कन्नड़ में सुनाते थे और उसके बाद दस-ग्यारह बजे रात तक मूलाचार पढ़ते रहते थे। कभी-कभी कलबसदि के पीछे दो बजे रात तक ध्यान सामायिक करते रहते थे। कभी खड़े होकर तो कभी बैठकर। यह सब जानकारी उनके साथ सदा रहने वाले मित्र मारुति बताते रहते थे। मित्र मारुति का कहना था कि मुझे तो नींद आने लगती, उबासी आने लगती थी किन्तु विद्याधर को स्वाध्याय में और ध्यान में कभी भी उबासी नहीं आती थी।

एक बार मारुति जी उनके साथ नहीं थे तब भी विद्याधर जी अकेले टीले वाले मंदिर के (कलबसदि) के पीछे रात को दो बजे तक ध्यान करते रहे। फिर रात में टेंट वाली टॉकीज की फिल्म छूटी तो लोग निकले, तब उनके पीछे-पीछे घर तक आते क्योंकि रात में कुत्ते भौंकते थे तो डर लगता था। घर पर ताला लगा कर जाते थे और आकर चुपचाप लेट जाते थे।

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