❓यह सब क्यों होता है।❓
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सादर जयजिनेंद्र बंधुओं।
👉 हमारे जैन समाज के मिडिया में हजारों समूह चल रहें हैं।
👉 बड़े ही दुख के साथ निवेदन करना चाहता हूं कि इन समूहों में बेचारे साधु -साध्वियों के पंच महाव्रत , समिति गुप्ति पर हर कोई पोस्ट करता है और स्वयं अम्मा पियरो बनकर कर्तव्य पालन करता है।
👉 उनके साधुपने की परख करने का उपदेश हर जगह हर कोई सहजता से देता नजर आता है।
**मेरे प्रिय भाईयो ‼**
👉 पर कभी हमने एक बार भी चिंतन किया कि हम किसी की परख करने योग्य है भी कि नहीं ❓❓
हमारा धर्म वस्तुत: **”संपेहएअपगमपएणं”**
अर्थात
‼ अपनी आत्मा का स्वयं निरीक्षण करने का है।‼
👉 जबकि हम सब बहिर्मुखी बनकर अपने अवगुणों की जगह दूसरे महापुरुषों के अवगुणों की छानबीन कर रहे हैं।
🚨 यह क्यों होता है❓
**देवानुप्रियों,**
☯ समकित, श्रावकपना और साधुपने का निर्णय सिर्फ केवलज्ञानी ही कर सकते हैं। ☯
👉 अतः हम उपर से कुसाधुओं में भी संयम होने का भ्रम पाल सकते हैं।
👉 हमारे अन्दर रही गुटबाजी हमे कभी-कभी सही निर्णय नहीं लेने देती।
🌺 हमे तो अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने की सरलता धारण कर हमारा धर्म प्रवेश तो पहले सुनिश्चित करना चाहिए। 🌺
👉 बाद में अपने अंदर रहे अवगुणों को निकालने की साधना यदि हम सब शुरू करेंगे तो ही श्रेयस्कर होगा 🌺
‼ जघन्य दो हजार करोड़ उत्कृष्ट नौ हजार करोड निर्ग्रन्थ मुनिमहात्मा हमेशा हमारे गुरुरूप में विराजमान रहते हैं, यह शाश्वत सत्य है।‼
👉 हमे अपनी परख करनी चाहिए।
हम किसी आचार्य, सम्प्रदाय, गच्छ गुटबाजी के चक्कर में फंसकर अनावश्यक टिप्पणियां कर सुसाधु का निर्णय ले लेते हैं जो कभी गलत भी हो सकता है।
👉 एक ही समूह के सभी साधु साध्वी सुसाधु या सभी असाधु ही है यह भी जरूरी नहीं होता।
🕎 इसलिए हमें अन्तर्मुखी बनकर हमारी त्याग, तपस्या में वृद्धि करते रहना चाहिए। 🕎
**जैनम जयति शासनम**