यह प्रतिमा यक्ष धरणेन्द्र की है जिनके सिर पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ विराजित हैं।

 

प्रतिष्ठासारोद्धार ग्रंथ के अनुसार धरणेन्द्र यक्ष चतुर्भुजी होते हैं सर्प हाथों में धारण करते हैं, सिर पर भी सर्प का विधान है, एवं नागपाश भी। इस प्रतिमा में पदम् धारण किये हैं जो शास्त्रसम्मत नहीं है लेकिन यह शिल्पगत त्रुटि या सुंदर बनाने का प्रयास है। उन्हीं के ऊपर गज अभिषेक या पुष्पवर्षा कर रहे हैं। दोनों ओर भी कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाएं हैं। प्रतिमा पर सवंत् 1480 का लेख अंकित है।

जैन यक्षों में धरणेन्द्र के अतिरिक्त सिर्फ पाताल यक्ष के सिर पर ही सर्प का विधान है लेकिन वे षड्भुजी होते हैं।
डॉ . जिनेन्द्र कुमार जैन