मोह का क्षय अर्थात मोक्ष

संक्षिप्त मे,

जी,

माफ करे सा,

विवेक पूर्वक जीवन जीने का प्रतिफल मोक्ष है. अपने स्वभाव रहने का प्रतिफल मोक्ष है. जब हम स्वभाव में रहते हैं तब हम राग और द्वेष से दूर होते हैं. अर्थात हम मोक्ष की स्थिति मे होते हैं. मोह का क्षय अर्थात मोक्ष.

विवेक पूर्वक जीवन जीना इच्छा नहीं बल्कि धर्म है. विवेक पूर्वक जीवन जीना अर्थात वर्तमान में जीना. क्योंकि हम जो कार्य जिस क्षण मे करते हैं उस क्षण मे उस कार्य के प्रति समर्पित होते हैं. अर्थात उस स्थिति मे हम भविष्य और भूतकाल मे नही होते हैं.

जब हम कोई भी इच्छा की प्राप्ति के लिए कोई कार्य करते हैं तब हमारे मन में फल की इच्छा रहती है जिससे वह कार्य सही तरीके से नहीं होगा. जैसे एक उदाहरण देता हुँ की हम दिल्ली जाने की इच्छा से खुद गाड़ी चला कर दिल्ली जा रहे हैं. यदि गाड़ी चलाते समय हमारे दिमाग में दिल्ली का ख्याल आता रहा तो दुर्घटना होने की संभावना हो सकती है. सामने क्या है दिखेगा नहीं.

अर्थात कोई भी फल की इच्छा के कारण कार्य करने पर कार्य करते हुए हम भ्रमित होंगे. और कार्य का फल जैसा हम चाहते हैं वैसा हर बार मिलता नहीं है जिस कारण हम फल की चिंता मे जिएंगे. इस चिंता के कारण भी कार्य करते समय ग़लती होने की संभावना रहेगी. इसलिए. हमे कोई भी कार्य फल की इच्छा से नहीं करना चाहिए.

एक बार वापस कहता हूं कि फल की इच्छा से कार्य करने पर इच्छित फल मिलेगा या नहीं इस बात की कोई निच्छिता नहीं है.

फिर भले वह मोक्ष की इच्छा हो या निर्वाण की.

अशोका ऊ सालेचा
७२०८०४२३२०