साहिबजदों का बलिदान और दीवान टोडर मल जैन
दिसंबर का आखिरी सप्ताह सिक्ख इतिहास में ही नहीं, देश के इतिहास में बहुत बड़ी शहादत को याद दिलाते हैं!
22 दिसम्बर गुरु गोबिंद सिंह जी 40 सिक्ख फौजों के साथ चमकौर की गड़ी एक कच्चे किले में 10 लाख मुगल सैनिको से मुकाबला करते है। एक एक सिक्ख 10 लाख मुगलिया फौजों पर भारी पड़ता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी के बड़े बेटे 17 वर्षीय साहेबजादा अजित सिंह ने मुगल फौजों में भारी तबाही की, लेकिन 10 लाख मुगलिया फौजों के सामने शहीदी को प्राप्त करते है।
छोटे 14 वर्षीय साहिबजादे जुझार सिंह ने बड़े भाई की शहादत को देखते हुए पिता गुरु गोबिंद सिंह जी से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगी। एक पिता ने अपने हाथो से पुत्र को सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा। वह भी लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए…।
गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों छोटे बेटे साहिबजादे 7 वर्षीय जोरावर सिंह और 5 वर्षीय फ़तेह सिंह अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ युद्ध के दौरान पिता गुरु गोबिंद सिंह जी से बिछड़ जाते हैं। जो रसोइया गंगू ब्राह्मण की नमक हरामी की वजह से इनाम के लालच में सरहंद के नवाब वजीर खान के पास बंदी बना लिए गए।
दोनों मासूम बच्चो को इस्लाम कबूल करवाने तरह तरह की तकलीफे दी जाती है। माता गुजरी जी व उनके पोतों को दिसम्बर माह की खून जमा देने ठड़ में किले के ठंडे बुर्ज में कैद कर रखा जाता है।
27 दिसम्बर को वजीर खान के दरबार में दोनों छोटे साहिबजादों को हाजिर करने का फरमान जारी होता है। दादी अपने पोतो को सजा कर माथे पर कलगी लगाकर भेजती है।
कचहरी में घुसते ही नवाब के समक्ष शीश झुकाना होता है। जो सिपाही साथ जा रहे थे, वे पहले सर झुका कर खिड़की के द्वारा अन्दर दाखिल हुए।
उनके पीछे साहबज़ादे थे। उन्होंने खिड़की में पहले पैर आगे किये और फिर सिर निकाला। थानेदार ने बच्चों को समझाया कि वे नवाब के दरबार में झुककर सलाम करें।
किन्तु बच्चों ने इसके विपरीत उत्तर दिया और कहा कि, यह सिर हमने अपने पिता गुरू गोबिन्द सिंह के हवाले किया हुआ है, इसलिए इस को कहीं और झुकाने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता।
मुगलिया फरमान बच्चों को सुनाया गया, “मुसलमान बनना स्वीकार नहीं करोगे तो कष्ट दे देकर मार दिये जाओगे और तुम्हारे शरीर के टुकड़े सड़कों पर लटका दिये जायेंगे, ताकि भविष्य में कोई सिक्ख बनने का साहस न कर सके।”
इस्लाम कबूल करने की बजाय तो हमें सिक्खी जान से अधिक प्यारी है। दुनिया का कोई भी लालच व भय हमें सिक्खी से नहीं गिरा सकता। हम पिता गुरू गोबिन्द सिंह के शेर बच्चे हैं तथा शेरों की भाति किसी से नहीं डरते। हम इस्लाम धर्म कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। तुमने जो करना हो, कर लेना। हमारे दादा श्री गुरू तेग बहादुर साहिब ने शहीद होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु धर्म से विचलित नहीं हुए।
बच्चो की बाते सुनकर नवाब वजीर खान तिलमिला गया और बच्चों को नीव में चिनवाने का आदेश दिया।
दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग ने जोरावर सिंह व फतेह सिंह को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ कर दी। बनते बनते दीवार जब फतेह सिंघ के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंघ दुःखी दिखने लगे।
काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंह छोटा हैं। दुनियाँ में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है।
फतेह सिंह को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है। जिसपर छोटे भाई फतेह सिंह ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर बड़े भाई को साँत्वना दी।
चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ।
इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ।।
दोनों साहिबजादे धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गये खबर जब माता गुजरी जी तक पहुची तो उन्होंने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता गुरु तेगबहादुर जी व चारो बेटे साहिबजादा अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह व फ़तेह सिंह जी को देश धर्म की रक्षा की खातिर न्योछावर कर दिया।
यह कहानी दीवान टोडर मल जैन के बिना पूरी नहीं होती. साहिबजादों के संस्कार के लिए नवाब ने शर्त रखी थी की संस्कार के लिए जमीन लेने के लिए जितनी जमीन पर सिक्के खड़े करके बिछा दिए जायेंगे,उतनी जमीन ले सकेंगे.
दीवान टोडर मल जैन जो कि एक ओसवाल जैन व्यापारी थे और उन्हें दीवान पद दिया गया था,ने जमीन पर सिक्के खड़े करके जमीन खरीदी थी.
जिस पर नवाब उनसे नाराज भी हो गया,उन्हें सरहिंद छोड़ कर जाना पड़ा.दीवान टोडरमल जैन देवी चक्रेश्वरी माता के अनन्य भक्त थे जिनका मंदिर सरहिंद के साथ ही स्थित है.
उनका जहाज हवेली आज खंडहर बन चुकी है जब वो गुरु गोबिंद सिंह जी से मिले तो गुरु जी ने उनसे वरदान मांगने कहा. टोडर मल जैन ने कहा की उन्हें वर दिया जाए की उनके औलाद न हो,ताकि वो इस बात पर घमंड न कर सके..
विश्व जैन संगठन के पंजाब प्रभारी डा संदीप कुमार जैन, जैन इतिहासकार रविंद्र जैन, मीडिया प्रभारी निखिलेश जैन ने बताया कि मानवता की और सर्वधर्म एकता की ऐसी मिसाल अतुलनीय है.. उन्होंने कहा है सरकार को हवेली का राष्ट्रीय स्मारक बनाना चाहिए.