तेलंगाना के जैन स्थापत्य
तेलंगाना के लगभग सभी जिलों में पहली शताब्दी के जैन मन्दिर, जैन गुफाए एवं जैनों की बड़ी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं। श्री विजय कुमार जैन ने अपनी ई- पुस्तक Ancient art & antiquities of Karnataka,Telangana,Andhra,&kerala में लगभग तीस से ज्यादा पुरातन मन्दिरों का विवरण दिया है। तेलंगाना में कुछ पुरातन जैन मंदिरो में वैदिक रीति से सेंवा पूजा होती हैं। एक या दो मन्दिरो का 14वीं – 15वीं शताब्दी से मस्जिद के रूप में उपयोग हो रहा हैं। बहुत ही कम मन्दिरों में जैन पद्धती से पूजा एवं अर्चना हो रही है। एक दो गाँवों को एवं बड़े शहर जैसे हैदराबाद आदि में मन्दिरों का रख रखाव सुनियोजित तरीके से हो रहा है। तेलंगाना में मन्दिर बहुत ही भव्य है। पहाड़ो पर मन्दिर के साथ सन्त वृन्दों के ठहरने के लिए गुफायें बनी हुई है। मंदिर शिक्षा के केंद्र भी थे। जिनमें आयुर्वेद चिकित्सा के साथ शल्य चिकित्सा की भी शिक्षा दी जाती थीं। बहुत से मन्दिरों के इर्द-गिर्द एवं पहाड़ी जगह पर जिन प्रतिमायें इधर-उधर बिखरी पड़ी है। तेलंगाना में नदीयों के पास, पहाडी इलाकों में, गाँवों में जहाँ भी खुदाई होती है वहाँ जिन प्रतिमाये एवं जिन मन्दिर के भग्नावशेष प्राप्त होते हैं। मेरा सकल जैन समाज से निवेदन है कि हमें हमारी धरोहर का संज्ञान लेना चाहिए। बिखरी पड़ी प्रतिमा एवं खण्डहर बने मन्दिरों का रखरखाव करने के लिए आगे आना चाहिए। वर्तमान में तेलंगाना में जैनों कि संख्या लगभग 50,000 हैं जिसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रवासी जैन है जो राजस्थान- गुजरात -मध्यप्रदेश से जा कर बसे हुए हैं। स्थानीय जैन 5000 से भी कम होंगे। लेकिन तेलगू साहित्य जैन विद्वानों के योगदान से भरा पड़ा है। साहित्य से हमें बहुत कुछ इतिहास के बारे में जानकारी मिल सकती है।
तेलंगाना में मन्दिरों एवं अन्य स्थानों में मिले शिलालेखों से जैन दर्शन कि भव्यता एवं शासन द्वारा दिया गया मान सम्मान का पता लगता हैं। बहुत से मन्दिरों को उनकी देखभाल एवं रख-रखाव के लिए तत्कालीन शासन ने जमीन एवं बहुत सारी राशि दी थी। मन्दिरों कि भव्यता खुदाई आदि उस समय की विकसित वास्तुकला का बरवान करती है। दक्षिण भारत में स्थित तेलंगाना के मन्दिर में 30 फिट ऊंची 1000 साल पुरानी प्रतिमा है जो दक्षिण भारत कि दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है। धातु कि कुछ प्रतिमायें हैदराबाद के म्युजियम में सुरक्षित है। 2000 वर्ष पुराने जैन मन्दिर में दुष्यन्त- शकुन्तला पुत्र भरत की प्रतिमा है। कुलपाकजी में हरे पत्थर कि प्रतिमा जो पन्ना कि प्रतिमा हो सकती है। जैन गुफाओं में ध्यान कक्ष बने हुए हैं। वर्तमान में उन तक पहुँचना मुश्किल है। बहुत सी जगह प्रतिमायें खुले में पड़ी हैं। असातना हो रही है। ना जैन समाज न पुरात्तव विभाग न वर्तमान शासन संज्ञान ले रहा है। कृपया चिंतन-मनन करें।धरोहर की रक्षा करे ।
एन. सुगालचंद जैन, चेन्नई
दिनांक : 17.12.2023