समाज अंधभक्तों के लोभवश मिथ्या प्रचार से साबधान !

समाज अंधभक्तों के लोभवश मिथ्या प्रचार से साबधान ! जैन मत का मूल्य मतान्ध लोगों को एक बार दिखा कर तो देखो. एक एक वोट की कीमत होती है, फिर हम तो लाखों में हैं. आचार्य श्री विद्यासागर जी का पुराना 8 *जनबरी 2023 का प्रवचन वीडियो, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री के शाकाहार की प्रशंसा की थी, को अंधभक्तों द्वारा अब प्रचारित किया जा रहा है कि आचार्यश्री की भाजपा के पक्ष में मतदान की अपील है. ऐसे ही सम्मेदशिखर पर एक साल से ज्यादा पुराने वीडियो का भी प्रचार किया जा रहा है कि सरकार ने जैनों की मांग मान कर कृतार्थ किया है !! वस्तुस्थिति से समाज परिचित है कि आचार्य गुणधर नंदी जी द्वारा 4 दिन पहले देश भर के संतो की ज़ूम मीटिंग कर उनके सन्देशों द्वारा समाज को राज्यों के चुनावों में तीर्थ विरोधियों और गिरनार को हड़पने में राजाश्रेय देने वालों को धूल चटाने का स्पष्ट आदेश दिया है.

चार दिन पुराना निम्न वीडियो सुन लें, शंका समाधान हो जाएगी. जाग्रत हों, अभी नहीं तो कभी नहीं! वीडियो में आचार्य विद्यासागर जी का स्पष्ट आदेश है कि हमें विगत सालों में सरकार द्वारा केवल लॉलीपॉल दी गई है ! अब वोट के साथ नोट मांग रहें हैं…… अगर सिख समाज पर ऐसी आंच होती तो ऐसे लोभवश धर्म विरोधियों को अभी तक तन्खय्या करार कर दिया जाता. गिरनार पर हाल में निर्दोष 7 नामजद +बस में सवार लगभग 200 अज्ञात यात्रियों पर गुजरात पुलिस द्वारा 28 अक्टूबर 2023 को दायर एकतरफा एफ. आई. आर., गिरनार महंत द्वारा एफ. आई. आर. की मांग के साथ आधा दर्ज़न पूज्य मुनिराजों के खिलाफ नवम्बर 2023 की कंप्लेंट, जैनम भवतु विनाशनम का नारा बुलंद करने वाले उसके सहयोगियों आदि के कृत्यों से सत्ता का शीर्ष नेतृत्व पूर्णतया जानकार है. इंटेलीजेंस ब्यूरो ऐसे सभी फीड बैक सरकार को उपलब्ध कराती है. लेकिन अभी तक कोई कदम उठाने की आवश्यकता तक नहीं समझी गई है. जैनों की जनसंख्या कम है, फिर घूम फिर कर वोट भी देते रहें हैं !!

तीर्थ आक्रँताओं का विरोध हिन्दू धर्म का विरोध नहीं है. चढ़ावे / सत्ता का लोभ रखने वाले हर धर्म में हैं. क्रिमिनल हर समाज में होते हैं. उनका विरोध उस समाज का विरोध नहीं है. जैन हिन्दू एकता का नारा देकर जैन वोट मांगने वालों का निहित स्वार्थ है. क्या उनके झाँसों में आना हमारे धर्म – तीर्थ हित में है ? 25 नवंबर को राजस्थान में चुनाव होने तक सत्ताधारियों द्वारा जैन मतों के लिए बहलाना फुसलाना स्वाभाविक है ! उसके बाद कोई नहीं पूछेगा. जैन तीर्थ अतिक्रमण को हरी झंडी मिल जाएगी क्योंकि जैनों को जैन हिन्दू एकता के नाम से जब चाहो लुभा लो !!! मतदान करने को जैन समाज स्वतंत्र है. विचार सिर्फ इतना करना है कि जैन मतदाता को साधर्मियों / पूज्य मुनि राजों पर एफ. आई. आर. और अपने तीर्थों की सुरक्षा *या अपने राजनैतिक रुझान/स्वार्थ में से किसे चुनना है ??