*आचार्य पद से विभूषित*
सम्पूर्ण जैन समाज के लिए बड़े हर्षोल्लास का विषय है कि
*एलाचार्य श्री बने अब आचार्य श्री*
राष्ट्रसंत *श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज* ने अपने प्रिय अन्तेवासी शिष्य *एलाचार्य श्री प्रज्ञसागर जी मुनिराज* को आज *कुन्दकुन्द भारती दिल्ली* में अपने *93वीं जन्म जयंती महोत्सव* के उपलक्ष्य में अपने वरदहस्त कमल से मंत्रोच्चारण पूर्वक अत्यंत प्रशन्नचित होकर *आचार्य पद प्रदान कर* समस्त विश्व जैन समाज को एक *अनमोल रत्न* प्रदान किया।
आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने सर्व प्रथम मुनि विकर्ष सागर को 16 मई 2010 ऋषभ विहार, दिल्ली में उपाध्याय पद से विभूषित किया था जिसमे मुनि विकर्ष सागर का नामकरण उपाध्याय प्रज्ञसागर किया था।आचार्य श्री ने 29 जुलाई 2012 को त्यागराज स्टेडियम दिल्ली में *अपनी 50वीं स्वर्ण मुनि दीक्षा दिवस* के उपलक्ष्य में उपाध्याय श्री को एलाचार्य पद से विभूषित किया और आज *अपनी 93वीं जन्म जयंती महोत्सव* के उपलक्ष्य में अपने सबसे प्रिय अन्तेवासी शिष्य को *इस युग का सर्वश्रेष्ट आचार्य परमेष्ठि का पद* प्रदान कर
इस सम्पूर्ण कार्यक्रम में सानिध्य एवम उपस्तिथि *आचार्य श्रुतसागर जी मुनिराज, *स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टराक पंडिताचार्यवर्या स्वामी मूड़बद्री जैन काशी* भारत से आये सम्मानीय श्रेष्ठिगण एवं समस्त दिल्ली जैन समाज
समस्त जैन समाज को ग़ौरवान्वित किया हैं ।
इस असीम कृपा को जैन समाज सदा स्मरण रखेगा।
आज और अब से गुरुवार बने
आचार्य *शांति सागर* जी मुनिराज तत्शिष्य आचार्य *पायसागर* जी मुनिराज तत्शिष्य आचार्य *जयकीर्ति* जी मुनिराज तत्शिष्य आचार्य *देशभूषण* जी मुनिराज तत्शिष्य आचार्य *विद्यानन्द* जी मुनिराज तत्शिष्य आचार्य *प्रज्ञसागर* जी मुनिराज ।जय हो।
*परम्पराचार्य गुरवे नमः*
।।सादर जय जिनेंद्र।।
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