जैन धर्म की संख्या में वृद्धि न होने का कारण

जैन धर्म की संख्या में वृद्धि न होने का कारण सबसे बड़ा जातिवाद छुआछूत भेदभाव है अगर कोई इस धर्म को अपनाना चाहे तो जैन समाज से लेकर आचार्य तक उसके साथ में इसी प्रकार का भेदभाव करते हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति जैन धर्म नहीं अपनाना चाहता और वह चाहता भी है तो 2 दिन चाहता है तीसरे दिन अपना अपमान स्वाभिमान और अपने साथ भेदभाव जातिवाद को देखकर वह जैन धर्म से दूर चला जाता है और जैन धर्म का कट्टर विरोधी हो जाता है क्या यह विचार मेरे ठीक हैं अपना विचार विमर्श रखें

जबतक जैन कुल में जन्म नहीं होता है तब तक सही मायने में जैन नहीं बन सकते हैं| उसके पश्चात कर्म से जैन बनना पड़ता है मात्र जैन कुल में जन्म लेने से जैन नहीं बन सकते हैं लेकिन जैन कुल यहां प्राथमिक आवश्यकता है| तनिक विरोधाभास ​प्रतीत होगा लेकिन सत्य यही है| इसलिए जैन मुनि अजैनियों से आहार ग्रहण नहीं करते हैं|
अन्य वर्ग के जैन बन सकते हैं और बनते भी हैं| उदाहरण: वैष्णव समाज में अनेकों जातियां हैं जो समय समय पर जैन संस्कृति को अपनाते हैं अगर वह सही रूप से वैष्णव धर्म को मानते हैं| वैष्णव समाज से ​अग्रवाल लोग जैन धर्म अंगीकार करते हैं|

कैसे एक दलित या बंगाली जैन धर्म की कठोर चर्या को अपना सकता है? इसी कारण बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी को भी जैन मुनि ने जैन धर्म में अंगीकार करने से मना कर दिया था| उन्होंने यह शर्त रखी थी की में मांस मछली खाना नहीं छोड़ सकता हूं|

जिनेंद्र भगवान का क्षत्रिय कुल में जन्म हुआ था परंतु उन्होंने जैन बनकर जिनेंद्र पद को प्राप्त किया और कुछ भगवान महावीर के समय भी नीच जाति के लोग भी जैन और बुद्ध धर्म में शामिल हुए आज वह लोग अपने आप को वैश्य जाति के नाम से जानते हैं

सरक और बंगालियों में भेद है| शाकाहारी सराकों से जैनियों को कोई आपत्ती नहीं है| लेकिन कुछ जैन उनसे दूरी रख सकते हैं…धन के अभाव में
परंतु जैन नाम का तो कोई कल ही नहीं है जैन नाम का तो धर्म है और धर्म तो प्राणी मात्र का होता है यह तो भगवान महावीर ने कहा है उनकी वाणी के विरुद्ध जाना उचित है समाज को क्योंकि गौतम गंधार वी और भी तीर्थंकरों के समूह में ऐसे लोग थे जो की जैन नाम का कुछ नहीं जानते थे सिर्फ उन्होंने भगवान की शरण प्राप्त करी और जिनेंद्र बन गए

जो जन्म से जैन नहीं है परंतु पूर्ण रूप से जैन धर्म का पालन करता है देश शास्त्र गुरु पर श्रद्धा करता है फिर उसके साथ में जातिवाद छुआछूत भेदभाव क्यों करता है समाज जबकि जैन धर्म तो यह नहीं करता या तो वह जैन धर्म पर नहीं चल रहे हैं भगवान महावीर की वाणी पर नहीं चल रहे या वह जैन धर्म को भगवान को अपनी वाणी पर चलने की कोशिश कर रहे हैं
मांस खाने वालों से जैन समाज दूरी रखता है इसका यह मतलब नहीं की वह छुआ छूत को मानता है

तीर्थंकर भगवान के समहोशरण में सभी जीव बैठे हैं और उनकी दिव्य ध्वनि सिर्फ देवताओं को ही सुनाई दे रही है नहीं सभी जीवो को सुनाई दे रही है क्योंकि भगवान जीव मात्र के लिए उसे वाणी को प्रकाशित कर रहे हैं परंतु कुछ लोग उसे वाणी को सिर्फ देवताओं को ही सुनाएं बाकी लोगों को छोड़ दें तो उसमें बाकी लोगों का दोस है या उनका खुद का दोस् हैं जो भगवान की वाणी को भेदभावपूर्ण करके लोगों को बता रहे हैं

यहां मांस खाने वालों की बात नहीं हो रही मांस को छोड़कर पूर्ण रूप से जैन धर्म को अपनाना और उसके सिद्धांतों पर चलने के कुछ दिनों बाद उनके साथ जो होता है उसकी बात हो रही है और उसे भेदभाव से परेशान होने के बाद में वह पुणे इस क्रिया को करने लगते हैं जो वह कर रहे थे मतलब कि उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया था तो वह दोबारा खाने लगते हैं और जैन धर्म के कट्टर विरोधी हो जाते हैं
जैन कुल जैन जातियां जैन गोत्र – बड़ा पेचीदा मसला है और विवादास्पद भी

hint- जैन मुनि इन्ही कारण से नॉन ​जैन से आहार नहीं ले सकते हैं….उस जैन से भी नहीं जो मांस खाता है जैन कुल में जन्म लेने के बाद|
पूर्व में जैन मुनियों के बड़े कड़े नियम होते थे ….जब तक कंद मूल और सप्त व्यसन का त्याग न हो किसी जैन का…उससे भी आहार नहीं लेते थे|