मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के मधुबनी के माँझीथाम में चार जानवरों की बलि को लेकर उठा बवाल

मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के मधुबनी के माँझीथाम में चार जानवरों की बलि को लेकर उठा बवाल व जैनों का विरोधमधुबनी में आदिवासियों के पूज्य धार्मिक स्थल व हर बड़े आदिवासी वार त्यौंहार पर पशुओं की बलि और दारू चढ़ाई जाती हैं. इसी दिशोंम माँझीथान पर आदिवासी धार्मिक रीतिरीवाज़ के अनुसार मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन ने अपनी पत्नी के साथ पूजा अर्चना करते चार पशुओं की बलि चढ़ाई तो इस घटना पर सारे देश और विशेषकर जैनों में जमकर विरोध हो रहा हैं क्योंकि जैनों का कहना कि इससे उनके पवित्र तीर्थ सम्मेद शिखर जी की पवित्रता को भारी आघात लगता हैं, जो बर्दाश्त के बाहर हैं,उसी के ख़िलाफ़ कई आदिवासी संगठन व आदिवासी विचारक कह रहें हैं कि झारखण्ड आदिवासियों की संस्कृति व धर्म की बाहुल जनसंख्या का प्रदेश हैं और हर आदिवासी परिवार में मांस खाया भी जाता हैं और वार त्यौहारों पर बालियाँ देकर धार्मिक पूजा अर्चना की जाती हैं,वे कहते हैं कि देश भर के हर राज्य में कहीं कम तो कहीं बहुत अधिक मात्रा में बालियाँ देकर अपने अपने धर्म का पालन किया जाता हैं और आज भी देश भर में एक हज़ार ऐसे स्थान हैं जहाँ मुस्लिम,ईसाई,सिख व पारसी धर्म को छोड़कर बहुसंख्यक धार्मिक लोग सैकड़ों जानवरों को एक लाइन में खड़ा कर उन सबको एक साथ काटकर अपनी धार्मिक परिपाटी निभाते हैं.फिर हमें ही क्यों टारगेट किया जाता हैं,वहाँ सब क्यों चुप्प रहते हैं..?

वे कहते हैं कि सम्मेद शिखरजी को जैन अपना सर्वोच्च तीर्थ तो आदिवासी भी उसे मुरॉंग गुरु का दर्जा देकर पहाड़ को अपना पवित्र धाम होना मानते हैं.वे कहते हैं कि पिछले वर्ष ही केन्द्र की मोदी सरकार ने हम आदिवासियों व जैनों को आपस में लड़ाने का बहुत ही निकृष्ट कार्य किया था जिसे जैन व आदिवासियों ने मिलकर बहुत ही समझदारी से उस षड्यंत्र को नाकाम किया था और यह तय हुआ कि हम आदिवासी अपने क्षैत्र व सीमा में रहकर और जैन भी अपने क्षैत्र व सीमा में रहकर अपने धार्मिक क्रिया कलाप करें और हम भी केवल अपनी सीमा में रहकर अपने अपने धार्मिक परिपाटियों कर रहें हैं तो हमारे धार्मिक रीतिरिवाज व परिपाटी के साथ जानवर बलि के हमारे धार्मिक पद्धति का विरोध करने का किसी को कोई अधिकार नहीं हैं.वे कहते हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा इस पूरी पहाड़ी को पर्यटन,स्थानीय लोगों के वहाँ के स्थानीय तरह के उद्योग लगाने व इसको ईंको सैंसटिव क्षैत्र घोषित कर जैनों पर किसी नवीन निर्माण को प्रतिबंधित कर पहले से उसकी पवित्रता व धार्मिक मर्यादाओं को बिखेर वहाँ पर बड़ी बड़ी मांसाहार की होटले व पर्यटन की विकृतियों के चलते समूचे पहाड़ पर जो कुछ तबाही होनी हैं ,वो स्थायी रूप से केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा इस तीर्थ व पहाड़ी पर लादी व थोपी जा चुकी हैं और यह सब कुक मोदी सरकार के अपने जैन धर्म विरोधी एजेण्डे के चलते ही हो रहा हैं,उसे अब होकर रहना हैं क्योंकि यह समूचा पहाड़ व इसके विपुल संसाधनों का ख़ज़ाना उसे अपने कॉर्पोरेट मित्रों को लूटना हैं और चुनाव जीतने हेतु वहाँ आदिवासियों को जैनों के ख़िलाफ़ भड़काकर सत्ता पानी हैं.इसलिए आदिवासी विचारक कह रहें हैं कि दोने समाजों को बिना एक दूसरे का विरोध किए अपने अपने धार्मिक रीतिरिवाजों को अपने अपने सीमाओं में रहकर होने देना चाहिए.वे कहते हैं कि बहुत ज़रूरी हैं कि आदिवासी समाज जैनों की धार्मिक भावनाओं का कदर करें और जैन आदिवासी की धार्मिक परिपाटी का भलेही सम्मान न करे मगर विरोध भी न करें.यही दोनों के हित में हैं.

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जीवहिंसा को रोकना जैनों का धर्म ही नहीं बल्कि प्रथम कर्तव्य भी हैं.

प्राणी हिंसा को रोकना आज सबसे बड़ी चुनौती हैं,मगर हमारी आवाज आज तूती में नकारे से अधिक कुछ भी नहीं हैं,
क्योंकि तालियाँ तो सब बजाते हैं,मगर हमारा कोई साथ नहीं देता,हालात तो इतना दुखदाई हो चुका हैं कि हम ख़ुद उसी सरकार को चून रहें जो बीफ़ व हलाल मीट के निर्यात में दुनिया सर्वप्रथम स्थान व मच्छली मांस निर्यात मी विश्व भर में दूसरे सर्वश्रेष्ठ स्थान पर पहुँच चूकी हैं.
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लेखक:सोहन मेहता’क्रान्ति’जोधपुर,राज०