तीर्थंकर परमात्मा जिनेन्द्र भगवान आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर तथा युगप्रणेता थे।
तीर्थंकर परमात्मा जिनेन्द्र भगवान आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर तथा युगप्रणेता थे। उन्होंने प्राणिमात्र को सत्य धर्म की बोधि देकर मोक्षमार्ग आलोकित किया। उनकी स्तुति करके हम धन्य हो जाते हैं।
आचार्य मानतुंगने अत्यन्त कर्णप्रिय श्लोकों में भगवान आदिनाथ की स्तुति रची। भक्ति से ओतप्रोत यह स्तोत्र यदि ठीक से समझा जाये तो साधक को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो सकती है।
इस स्तोत्र का मूल नाम आदिनाथ स्तोत्र है परन्तु यह भक्तामर स्तोत्र के नाम से अधिक प्रचलित है।
वसन्ततिलका छन्द में रचे इस स्तोत्र की तर्ज़ पर आचार्य कुमुदचन्द्र ने भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति करते हुए कल्याणमन्दिर स्तोत्र भी रचा है।
भक्तामर स्तोत्र के शताधिक अनुवाद हो चुके हैं। जैन धर्म की सभी परम्पराओं में यह स्तोत्र अहोभाव से पढ़ा जाता है।
सन् १९०७ में जैन वाङ्मय तथा इतिहास के कालजयी विद्वान् पण्डित नाथूराम प्रेमी जो कि एक कुशल कवि तथा अनुवादक भी थे, ने भक्तामर स्तोत्र का बहुत ही सुन्दर पद्यानुवाद रचा। साथ में एक लघु टीका भी रच दी।
सन् २०११ में प्रेमीजी के प्रपौत्र मनीष मोदी ने भक्तामर स्तोत्र का अंग्रेज़ी अनुवाद किया।
इस पुस्तक में आचार्य मानतुंग विरचित भक्तामर स्तोत्र है, प्रेमीजी कृत हिन्दी पद्यानुवाद तथा लघु टीका है, एवं मनीष मोदी कृत आंग्लानुवाद है। कवर डिज़ाइन प्रेमीजी के प्रप्रपौत्र सम्यक् मोदी ने की है।
Tīrthankara Paramātmā Jinendra Bhagavān Ādinātha was the first Tīrthankara. He was the founder of Satya Dharma and the illuminator of the mokshamārga.
Ācārya Mānatunga composed the Bhaktāmara Stotra in his honour.
This divinely beautiful Sanskrit stotra has been translated more than a hundred times!
In 1907, Pandit Nathuram Premi, a legendary scholar of Jain literature and history, composed a beautiful poetic translation of this stotra in Hindi. He also wrote a short gloss.
In 2011, Premi ji’s great-grandson Manish Modi translated the Stotra into English.
The cover of this book features images of Lord Rishabhadeva (front cover) and Lord Rishabhadeva flanked by his sons Lord Bahubali and Lord Bharata Cakravarti (back cover). Both images are from Devgarh, c. 12th century CE. Photography and cover design by Samyak Modi, Premi ji’s great-great-grandson.
This book includes the Sanskrit original text composed by Ācārya Mānatunga, the Hindi poetic translation by Premi ji, his gloss, the English translation by Manish Modi, and an Introduction by Prof John E. Cort.
Every lover of poetry, every Sanskritpremi and every Jain must read this book.
Each Mandir, Dehrasar, Upashraya, Grantha Bhandar, library, etc. must have a copy. No collection of books on Dharma is complete without it.
We are proud to make this masterpiece available at our bookstore and online.
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