पार्श्वनाथ तीर्थ दर्शन गौरव यात्रा
#(108) पार्श्वनाथ तीर्थ दर्शन गौरव यात्रा
(स्वयंभू पार्श्वनाथ
कापरडा .)
कल्पवृक्ष के समान फलदायी तीर्थ जहां विश्व की एकमात्र डबल नागफणा से युक्त प्रतिमा चार मंजिले भव्य अप्रतिम देरासर में विराजमान है।
यह प्रतिमा संवत् 1674 में स्वत: प्रकट हुई इस कारण स्वयंभू पार्श्वनाथ के नाम से पहचानी जाती है।
जोधपुर जयपुर हाईवे पर जोधपुर से 50 किमी.पहले स्थित ग्राम कापरडा में जैनों का नहीं है कोई घर लेकिन यहां दादा का अजीमोशान दरबार सजा हुआ है। 108 श्री स्वयंभू पार्श्वनाथ भगवान की दोहरे फण वाली 21″× 16.25″ की ऊँचाई की कमलासन स्थित पार्श्व प्रभु की यह प्रतिमा पिस्तई रंग की होकर मनोहर कलात्मक परिकर में अत्यंत लुभावनी लगती है।
प्रभु के मस्तक पर दोहरे (डबल) सात फण सुशोभित होने से सौन्दर्य में अभिवृद्धि करते हैं। पार्श्व प्रभु की दोहरे फणों वाली विश्व में यह एकमात्र प्रतिमा है।
यह प्रभु प्रतिमा विक्रम संवत 1674 में पौष दशम को चमत्कारों के साथ प्रकट हुई थी जिसे विक्रम संवत 1678 में वैशाख शुक्ल पूर्णिमा पर आचार्य श्री जिनचंद्रसूरिजी के हाथों औपचारिक रूप से स्थापित किया गया था।
यह भव्य चार मंजिला राजसी देरासर सुश्रावक भानाजी भंडारी द्वारा 9 वर्ष के अथक प्रयास से बनवाया गया था।
चार खण्ड और पांच मण्डप से सुसज्जित इस जिनालय का भव्य शिखर लगभग 98 फीट ऊंचा है और लगभग 8 किलोमीटर की दूरी से देखा जा सकता है।
स्थापत्य शैली अद्वितीय है। हॉल में कई प्रतिमाएं हैं। गुंबद की छत, हॉल के खंभे और मंदिर के विभिन्न द्वार और आंतरिक दरवाजों पर पत्थर की मेहराबें कला में सभी अप्रतिम हैं।
जिनालय के बाहर सामने अधिष्ठायक भैरव देव का स्थान है।भैरवदेव बहुत प्रभावी है तथा पार्श्व भक्तों की मनोकामना पूरी करते है।
स्वयंभू पार्श्व प्रभु के दर्शन के लिए केवल भाग्य नहीं बल्कि सौभाग्य चाहिए।
जाहोजलाली से परिपूर्ण यह तीर्थ बिलाड़ा से 25 किलोमीटर और जोधपुर से सड़क मार्ग पर 50 किलोमीटर दूर तथा पिपाड सिटी से 16 किमी. दूर है।
यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला है। भोजनशाला भी उपलब्ध है।
व्यवस्था संचालन > श्री जैन श्वेताम्बर प्राचीन तीर्थ , कापरडा, श्री आनंदजी कल्याणजी पेड़ी , पो. कापरडा, वाया भावी जिला जोधपुर (राज.) 342 605
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