२१वीं शताब्दी का धर्म❓ जैनधर्म️

२१वीं शताब्दी का धर्म❓ जैनधर्म️

लेखक-अंतर्राष्ट्रीय प्रसिध्द पत्रकार:- शाकाहारी ,अहिंसक स्व.श्री मुज्फ्फर हुसैन, मुम्बई

हम यहाँ कर्मकाण्ड के रूप में नहीं, बल्कि दर्शन आधार पर यह कहना चाहेंगे कि २१ वीं शताब्दी का धर्म जैन धर्म होगा। इसकी कल्पना किसी सामान्य आदमी ने नहीं की है, बलिक बर्नाड शा ने कहा कि यदि मेरा दूसरा जन्म हो तो मैं जैन धर्म में पैदा होना चाहता हूँ। रेवेरेंड तो यहाँ तक कहते हैं कि दुनिया का पहला मजहब जैन था और अंतिम मजहब भी जैन होगा। बाल्ट यू.एस.एस. के दर्शनिक मोराइस का तो यहाँ तक कहना है कि यदि जैन धर्म को दुनिया ने अपनाया होता तो यह दुनिया बड़ी खूबसूरत होती ।

जैन धर्म नहीं जीने का दर्शन है। सरल भाषा में मैं कहूँ तो यह खुला विश्वविद्यालय है। आपको जीवनका जो पहलू चाहिए वह यहाँ मिल जायेगा। दर्शन ही नहीं बल्कि संस्कृति, कला, संगीत एवं भाषा का यह संगम है। जैन तीर्थंकरों ने संस्कृत को न अपनाकर पाली और प्राकृत को अपनाया, क्योंकि वे जैन दर्शन को विद्वानों तक सीमित नहीं रखना चाहते थे, बल्कि वह तो सामान्य आदमी ५ तक पहुँचे और उसके जीवन का कल्याण करे।

दुनिया के सभी धर्मों ने अपने चिन्ह तय किए। इसमें कुछ हथियारों के रूप में तो कुछ आकाश में चमकने वाले चाँद और सूरज के रूप में २४ तीर्थंकरों में एक भी ऐसा नहीं दिखलाई पड़ता. जिनके पास धनुष बाण होय गदा अथवा त्रिशूल। हथियारों से लैस दुनिया के राजा अपनी शानो-शोकत से अपना दबदबा बनाये रखने में अपनी महानता समझते थे, लेकिन यहाँ तो ईश्वर के बनाये हुए भोले पशु-पक्षी अथवा जलचर प्राणी उनके साथ हैं।

इंसान की सुविधा के लिए घोड़े, हाथी, गरूड़, मोर और न जाने किन-किन को अपनी सवारी बना ली, लेकिन जैन तीर्थंकर तो किसी को कष्ट नहीं देना चाहते हैं। वे अपने पांव के बल पर सारी दुनिया को उलांगते हैं और प्रकृति के भेद को जानने की कोशिश करते हैं। रहने को घर नहीं, खाने को कोई स्थायी व्यवस्था नहीं, लेकिन दुनिया के कष्टों का निवारण करने के लिए अपनी साधना में कोई कमी नहीं आने देते।

हर वाद ने व्यक्ति को छोटा कर दिया है, लेकिन हम देखते हैं कि वे जैन विचार ने मनुष्य को सबसे महान् बना दिया है। जीवनयापन करने के लिए लाचार बना देते हैं, लेकिन यहाँ तो दुनिया के अन्य धर्म मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाकर उसे मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता सर्वोपरि है।

जैनदर्शन में हिंसा पराजित करने में तीन ‘अ’ का महत्व है।

ये हैं -अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रह तीनों एक दूसरे जुड़े हैं वे अलग नहीं हो सकते।

भारत में न जीत सकने वाला सिकंदर जब एथेंस लौट था तो उससे एक जैन साधु ने कहा था कि दुनिया को जीतने व काश तुम अपने आपको जीत सकते, जैन साधु सिंकदर के साथ गये थे ।

नग्न दिगंबर जैन साधु कल्याण मुनि सिकंदर के बाद भी एथेंस में वर्षों त लोगों को अहिंसा का संदेश देते रहे। एथेंस में सब कुछ बदल गये है, लेकिन आज भी वहाँ उन जैन साधु की प्रतिमा लगी हुई है।

प्लेटो और एरिस्टोटल का एथेंस इतना प्रभावित हुआ पायथागोरस जैसा महान् गणितज्ञ यह कहने लगा कि मैं जैन बन गया हूँ ।

२१वीं शताब्दी पानी के संकट की शताब्दी बनने वाली है। जैन मुनि तो कम पानी पीकर अपना काम चला लेते हैं, लेकिन हम जैसे लोग क्या करेंगे? उसका मूल मंत्र है शाकाहार ।

२१वीं शताब्दी में जिस नारी स्वतंत्रता की बात की जाती है, जैनधर्म में झांककर देखो तो जैन साध्वियों को कितना बड़ा सम्मान मिलता है। वे पूजनीय हैं। धर्म को पढ़ाती और सिखलाती हैं। दासी और भोगिनी को साध्वी बना देने का चमत्कार केवल जैन धर्म ने किया है।

समानता और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है। जैनधर्म का भेवविज्ञान को साध्वी बना देने का चमत्कार केवलजैनधर्म ने किया है। समानताओं और स्वतंत्रता के साथ उनका स्वाभिमान स्थापित किया है। जैनधर्म का भेदविज्ञान आत्मा और शरीर को अलग कर देने वाला बहुत पुराना विज्ञान है। आत्म ही तो एटम है और समस्त दुनिया में शक्ति का संचार करती है। यदि आप अध्यात्म के आधार पर इसका विचार करते हैं, तो फिर आपको जैनदर्शन की ओर लौटना पड़ेगा। नागरिकता और राष्ट्रीयता इन दिनों हर देश के मानव का आधार है। लेकिन जब तक समानता और स्वतंत्रता नहीं मिलती, यह शब्द खोखले मालूम पड़ते हैं। मनुष्य के कष्टों का निवारण और अन्तर्राष्ट्रीय आधार पर उसका उद्धार केवल अनेकान्तमयी जैनदर्शन के माध्यम से ही संभव हैं।

लेखक- स्व.श्री मुज्फ्फर हुसैन, मुम्बई

अब स्वर्गवासी होने से शायद ये नंबर ना लगे पर जीवितावस्था में इनसे बात हुयी थी।बड़े ही सभ्य,हित ,मित,प्रिय भाषा के धनी थे।

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प्रचारक, समर्थक:- विश्व भारतीय संस्कृति बचाओ मंच, विघ्नहर नेमिनाथ गौशाला, विघ्नहर जैन बैंक।