प्रो. पलटणे, पुणे ने शोध करके बताया है
प्रो. पलटणे, पुणे ने शोध करके बताया है कि वर्तमान की २१७ जातिया, अतीत में जैन धर्म की अनुयाई रही है। पिछले कालखंड में वह मुख्य धारा से अलग हो गई है। ज्यादातर जातियां किसान है जो ग्रामीण अंचलों में बसती है। झारखंड, बंगाल व उड़ीसा की सराक समाज भी वैसी ही समाज है जिसे परम पूज्य सराकोध्दारक आ.ज्ञानसागरजी महाराज ने मुख्य धारा से जोड़ने का शुभारंभ किया। उत्तराखंड की डिमरी,शाह तथा हरियाणा, पंजाब में बसने वाले जाट, राजपूत,खत्री, अग्रवाल आदि वैसे ही समाज है। म.प्र. धाकड़,असाटी,गहोई,कुर्मी समाज है जो प्राचीन जैन है। महाराष्ट्र में कसार, मातंग, आदि अनेक समूह,समाज है जो जिन्हें मुख्य धारा से जोड़ने की जरुरत है। दक्षिण में नामधारी,कोमटी,साधुर आदि समाज है। सभी वर्ण में जैन धर्म पहले से ही मौजूद हैं। सराक समाज की तरह इनमें भी शोध,खोज होनी चाहिए। तभी सही गणना समाज व सरकार के सामने आएगी।
निवेदक:-एस.पी.जैन, एडवोकेट, दिल्ली।
मो.9780200235.