शिखर जी केस में श्वेत पत्र की आवश्यकता क्यों??
शिखर जी कोर्ट केस में पटना हाई कोर्ट ने आज से 20 वर्ष पहले 24 अगस्त 2004 को निर्णय के अंत में लिखा था
“दोनों पक्षों की धार्मिक आस्था के लिए कम लेकिन श्रेष्ठता के अहंकार की लड़ाई प्रतीत होती है जिसके कारण तीसरे को नाक खजाने (टांग अड़ाने) का मौका मिल जाता है।”
“जैनों में 70 – 80% दिगंबरी है और 20 – 30% श्वेताम्बरी है, जिनमें मूर्तिपूजक जैन अल्प संख्या में है और दूसरे शब्दों में कल्याण जी आनंद जी भी समस्त श्वेतांबर जैन समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते”
(कोर्ट निर्णय का स्क्रीन शॉट पढ़े)
अब यह समझ में नहीं आ रहा कि शिखर जी आंदोलन को 5 जनवरी 2023 को सामूहिक रूप से घोषणा करने वाली कमेटियां आखिर सुप्रीम कोर्ट में किस बात की लड़ाई लड़कर समस्त समाज को कटुता में क्यों झोंक रही है?
कोर्ट केस से संबंधित दोनों पक्षों ने आज तक ना तो समाज को केस की मुख्य मांगों के लिए ना तो कुछ बताया और ना ही श्वेत पत्र लेकर आए, क्यों?
जो है सो है।
उत्तम क्षमा
एक जागरूक श्रावक