सुखी कौन ? जैन आराधना भवन पोसालिया

दि.13/08/2024

जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वरजी म.सा . ने प्रवचन देते हुए कहा कि :- सुख का आधार बाह्य संपत्ति और वैभव नहीं है। यदि बाह्य संपत्ति की वृद्धि से ही सुखानुभूति होती हो तब तो जितने भी धनवान व्यक्ति हैं, वे सब सुखी होने चाहिए, जब कि अधिकांश धनी व्यक्ति भी हमें भीतर से दुःखी ही नजर आते हैं। उनके इर्द-गिर्द भी समाधान नहीं किंतु समस्याओं के जाले बुने हुए दिखाई पड़ते हैं।
सचमुच सुख की आधारशिला संपत्ति नहीं, किन्तु चित्त की प्रसन्नता है और चित्त की प्रसन्नता का आधार है समाधान-वृत्ति । जो व्यक्ति हर परिस्थिति, हर संयोग व हर घटना को सहजता से स्वीकार लेता है, ऐसा व्यक्त्ति विपरीत संयोगो में भी परम मस्ती का अनुभव कर सकता है। जिस व्यक्ति के पास समाधान-वृत्ति नहीं है, ऐसा व्यक्ति करोड़ों की संपत्ति के बाद भी भिखारी ही रहने वाला है, असंतुष्ट मनोवृत्ति के कारण अमाप संपत्ति के बीच भी वह दीन ही बना होता है। सार यही है कि जो धनवान है, वह एकांततः सुखी नहीं है, सुखी वही है जो संतुष्ट है।

पुण्य के उदय से प्राप्त सुख की सामग्रियों के साथ जीवन में ‘संतोष गुण हो तभी वे सामग्रियाँ हमें सुखानुभूति करा सकती हैं, परन्तु उन सामग्रियों के साथ यदि संतोष गुण न हो तो वे ही सुख की सामग्रियाँ भयंकर दुःख का कारण बन सकती हैं।

असंतोषी व्यक्ति प्राप्त सामग्री का कभी आनंद लूट नहीं सकता क्योंकि असंतोष की आग उसे भीतर ही भीतर जलाती रहती है।
कोई व्यक्ति हाथ में रही सुलगती हुई लकड़ी को नहीं छोड़े तो वह उस आग की गर्मी की पीड़ा से कैसे मुक्त हो सकता है ?
बस, इसी प्रकार जो असंतोष की आग को सदैव अपने साथ ही रखता हो, वह व्यक्ति प्राप्त सामग्री में सुखानुभूति कैसे कर सकता है ?

प्राप्त सामग्री में असंतोष और अप्राप्त सामग्री की लालसा यही हमारे दुःखों का मूल है। जीवन में शांति चाहते हो तो पुण्य से प्राप्त सामग्रियों में संतोषी बनना सीखें और जो सामग्रियाँ प्राप्त नहीं हुई हैं, उनकी लालसा करना छोड़ें । बस, वही व्यक्ति अपने जीवन में सुखानुभूति कर सकेगा, जिसने संतोष गुण को आत्मसात् किया है ।

पार्श्वनाथ प्रभु के 2800 वें निर्वाण कल्याणक निमित्त पार्श्व प्रभु की निर्वाण भावयात्रा सानंद सोत्साह सम्पन्न हुई । बाल कलाकार सिद्धार्थ मुथा भक्ति संगीत प्रस्तुत किया । पुज्य आचार्य श्री ने पार्श्व प्रभु के जीवन पर प्रकाश डाला।