जैन धर्म अनादि काल से है

जैन धर्म अनादि काल से है
इसके वेदों और उपनिषदों में प्रमाण भाग -1
~~~~~~~~
✒️ जैन धर्म आत्मा को मानता है और आत्मा अनादि (नित्य) होने से जैन धर्म भी आदि अनंत माना गया है।
✒️ ऐसी जैन धर्म की मान्यता है कि इस वर्तमान चौबीसी से पहले अनंत चौबीसी हुई है और भविष्य में भी होगी।
✒️ वर्तमान चौबीसी में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव हुए। उनके समय में उनकी माता मरुदेवी माता आत्म धर्म को प्राप्त कर मोक्ष पधारी।
✒️ वैसे इसके पूर्व भी अनंत आत्माएं मोक्ष को प्राप्त कर चुकी है।

इससे यह स्पष्ट है कि जैन धर्म का अस्तित्व वेदों आदि में उल्लेख होने से उस समय में था।
जैन और वैदिक संस्कृति में बहुत सामंजस्य है। इसलिए हमें विशेष फर्क समझ में नहीं आता है और हम दोनों धर्मों की अनावश्यक तुलना करते हैं।
वैदिक धर्म कर्मकांड को मानता है और सबकुछ ईश्वर की कृपा से होता है। हमारा अच्छा-बुरा जो कुछ भी होता है वह भगवान की कृपा से ही होता है। ऐसी उनकी मान्यता है।
जबकि जैन धर्म कर्म प्रधान धर्म है। जीवन की सारी घटनाएं अपने कर्मों के अनुसार होती है, परंतु पुरुषार्थ करने पर कर्म को क्षय किया जा सकता है और अपने भविष्य को अपने बल पर ही संवारा जा सकता है।
जैन धर्म की प्रमुख मान्यता है कि पुरुषार्थ करने पर साधारण साधक भी भगवान बन सकता है।
भगवान महावीर स्वामी का उपदेश है जो मैंने किया वह आप भी करों ; आप भी भगवान बन सकते हो।
अर्थात आप भी मोक्ष को प्राप्त कर सकते हो।

इसके आगे का वर्णन कल लिखने के भाव रखता हूं।

जय जिनेंद्र सा,
✒️ रमेश मेहता जैन, सांगली,
7888183289.