॥जैन जनगणना(jain census)॥धर्म के कालम में जैन लिखाये

॥अंतरराष्ट्रीय जैन अध्ययनदिल्ली।।

International school of jain studies ने जैन समुदाय की जनसंख्या, सामाजिक और आर्थिक विकास सहित जुड़ी हुई अनेक जानकारियों का एक अध्ययन वर्ष 2019 में किया।यह अध्ययन “ISJS” ने मुख्यतः राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु आदि जैन बाहुल्य राज्यों में किया।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2011 मे जनसंख्या के आंकडे जारी किये गये। उन आकड़ों के अनुसार देश में जैनियों की संख्या लगभग 45 लाख दर्ज की गई थी। जैन समाज को यह आकड़े देखकर हैरानी हुई थी, क्योंकि उनका मानना था कि जैन समुदाय की वास्तविक जनसंख्या, सरकार द्वारा प्रदत आंकडों से कहीं ज्यादा हैं। इस सन्दर्भ में “ISJS” ने प्रायोगिक तौर पर (randomly) दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में जैनियों की जनसंख्या की गणना की और पाया कि जैन समुदाय की वास्तविक जनसंख्या और सरकारी आंकड़ों में लगभग 96 प्रतिशत का अन्तर है।अर्थात यदि वास्तविक जनसंख्या 196 हैं तो, जनसंख्या विभाग ने 100 ही दर्ज की हैं।
ISJS द्वारा किए गए अध्ययन से मुख्य रूप से, निम्नलिखित तथ्य आये, जिनको जैन समाज द्वारा संज्ञान में लिया जाना चाहिए एवं उन पर सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए।
1 – वर्ष 1881 में जैनियों की कुल आबादी भारत की जनसंख्या की 0. 49 % थी , जो कि 2011 में घटकर 0.37 % ही रह गयी । अर्थात जनसंख्या में लगभग 25 % की कमी दर्ज की गई।
2- वर्ष 1901 में लगभग 30% शहरो में रहते थे, जबकि 2011 में शहरो में रहने वालों की संख्या बढ़कर 80% हो गई।
3- मात्र 28 प्रतिशत ही अपने नाम के आगे जैन उपनाम लगाते हैं, जबकि 66 प्रतिशत जैन उपनाम का प्रयोग नही करते हैं।
4- लगभग 30 प्रतिशत की मासिक आय 25000 रूपये प्रतिमाह से भी कम हैं।
5- समुदाय का लिंगानुपात (gender ratio) 2011 की जनसंख्या के अनुसार प्रति 1000 पुरूषों के लिए 958 था, जो कि अभी और घटकर अनुमानित 951 ही हैं। और इसके और अधिक कम होने की आशंका हैं।
6-वर्ष 2011 में 0 से 6 वर्ष की बालिकाओं का लिंगानुपात 889 था, जो कि 2019 में घटकर 815 ही रह गया हैं। ऐसी आशंका हैं कि यह लिंगानुपात अगले 10 – 15 वर्षों में घटकर 800 रह सकता हैं। अर्थात प्रति 1000 युवको के लिए 800 युवतियां।
7-अभिभावकों पर निर्भर रहने वाले बच्चो की संख्या, वर्ष 2011 में प्रति हजार पर 311 थी, जो कि घटकर 2019 में 266 रह गयी। अर्थात बच्चों की जन्मदर में लगभग 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
8 – वर्ष 2011 में बुजुर्गो की संख्या प्रति 1000 व्यक्तियों पर 187 थी, जो कि अब बढ़कर 245 हो गई है। अर्थात बुजुर्गों की संख्या में तो बढोत्तरी हुई है लेकिन कुल जनसंख्या में कमी दर्ज की गई। बुजुर्गों की औसत उम्र मे वृद्धि अच्छे स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करती हैं।
9- साक्षरता की दर 97 प्रतिशत हैं।
10 – 68प्रतिशत स्नातक है ।
11- पेशेवर (professional) व्यक्तियों की संख्या लगभग 20 प्रतिशत हैं, जिसमें मुख्य रूप से अंकेक्षक (charted accountant), इंजीनियर, डाक्टर और वैज्ञानिक शामिल हैं।
12 – 21 प्रतिशत सरकारी और नीजि कम्पनियों में सेवारत है।
13 – व्यवसाय और औधौगिक गतिविधियों मे उनकी संख्या 70 प्रतिशत है।
14- लगभग 84 प्रतिशत के पास स्वयं के आवास हैं।
15-एकल परिवारों (nuclear family) की संख्या 45 प्रतिशत हैं।
।।चिंताजनक परिस्थिति।।

16- कुल जनसंख्या में से 27 प्रतिशत लोग, विवाह की उम्र पार करने के बावजूद कुंवारे हैं।
17-विवाह की उम्र पार करने के बावजूद 56 प्रतिशत लोग किसी न किसी कारण से विवाह देरी से करना चाह रहे हैं।
18 – शराब का सेवन करने वालों की संख्या 22 प्रतिशत पाई गई।
19- कुछ प्रतिशत मांसाहार का भी सेवन करते हैं।
20- वर्ष 2019 के अध्ययन के अनुसार 69 प्रतिशत को जैन दर्शन, परम्पराओं और मान्यताओं में कोई रुचि नहीं हैं।
वर्ष 2019 की ISJS के अध्ययन के कुछ महत्वपूर्ण परिणाम आपके सम्मुख प्रस्तुत किये गयें हैं।
अगले संस्करण में इन विसंगतियों को दूर करने के प्रयासों के बारे में सुझाव देने का प्रयास किया जायेगा।
सुगाल चन्द जैन,
चेन्नई-3-7-24.