जैन जनगणना के सही आंकड़ों में सबसे बड़ा रोड़ा
जैन जनगणना के सही आंकड़ों में सबसे बड़ा रोड़ा : जैन न लिखकर सरनेम (उपजाति) लिखना।
जैन 43 लाख नहीं। वास्तविक संख्या है, लगभग 2 से 3 करोड़
– अनिल बड़कुल
देश की नीतियाँ बनानी हों या संसद/विधानसभा या राजनीति में स्थान देना हो, आजकल सब कुछ सँख्याबल पर निर्भर करता है बो हमारे पास नहीं है। आजकल तो जाति/धर्म जनसँख्या देखकर ही राजनीति और राष्ट्रनीति बन रही हैं। 2011 की शासकीय जनगणना में जैन जनसंख्या लगभग 43 लाख बताई गई जो किसी भी दृष्टि से सही नहीं कही जा सकती है। श्वेताम्बर समाज का बहुभाग जैन न लिखकर बिभिन्न उपजाति/उपनाम लिखते हैं। दक्षिण भारत खासकर ग्रामीण क्षेत्र में तो जागृति का अभाव है। उन्हें जैन संस्कृति का ज्ञान नहीं। लोग कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं सूत्र बताते हैं कि कुछ लोग पूर्ण शाकाहारी तक नहीं हैं। ऐसे में विचार करें, जनगणना कर्मचारी कैसे समझें कि यह जैन हैं और वह पत्रक में हिन्दू लिख लेते हैं।
उत्तर, मध्य भारत मे भी दिगम्बर जैन धर्म में कई उपजातियाँ ऐसी हैं जिनमें 80-90% लोग जैन न लिखकर उपजाति, गोत्र ही लिखते हैं जैसे पाटनी, बड़जात्या, कासलीवाल, बाकलीवाल, खंडेलवाल, बाँझल, बंसल , मित्तल, अग्रवाल आदि-आदि। एक बात और अब जन्म लेने बाले बच्चों के नाम मे प्रारंभ से ही जैन लिखने की परंपरा प्रारंभ की जानी चाहिए।
पूर्व एवम दक्षिण के कई क्षेत्रों में पूर्व में जैन अनुयायी जैसे सराक एवम कुछ अन्य, अब जैन धर्म से दूर, अन्य धर्मों को पालकर अपने को हिन्दू समझने लगे हैं। उनकी गिनती हिंदुओं में की जाती है।
सार यह है कि उपरोक्त उपनाम/गोत्र के कारण या नाम में जैन न होने से जनगणना कर्मी, पत्रक में हिन्दू लिख देते हैं। एक-एक नगर की जैन जनसंख्या देखकर भी समझा जा सकता है कि हम कितने हैं और सरकारी आंकड़े क्या बता रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर की जैन सेवाभावी संस्थाएं अभियान चलाकर लोगों को जाग्रत करें कि वे जनगणना के समय कर्मचारियों को बताएं कि हम जैन हैं, धर्म के कॉलम में जैन ही लिखें। परिणाम देख लोग हैरान हो जाएँगे कि हम वास्तव में 5 गुना अधिक हैं।
■ अनिल जैन बड़कुल, गुना मप्र