महाशिवरात्रि जैन पर्व
सुज्ञ श्रावक ए्वं श्राविकाएं सादर जयजिनेन्द्र सा, आज सुबह से महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं, फोटो आदि वाट्सएप पर आ रहे है। यह देखकर बहुत आश्चर्य हो रहा है ❗ जैनी क्या इनकी आराधना व पूजा कर सकते है ❓ कदापि नही। हम जैन है। जिन धर्म में हमारी श्रद्धा कितनी है ❓इस पर चिंतन अवश्य है। इन बातों से यह निष्कर्ष निकलता है…. हम भगवान महावीर को मानते है ❗ लेकिन भ.महावीर की नही मानते ❗ भगवान महावीर ने चार तीर्थ की स्थापना की उसमें श्रावक श्राविका है। श्रावक का अर्थ होता है – श्रा – श्रमण निर्ग्रन्थ व – वीतराग के- कथन अनुसार आचरण जो श्रावक वीतराग भगवंतो द्वारा कथित श्रमण निर्ग्रन्थो द्वारा अनुगमन एवं मार्गदर्शित के अनुसार आचरण करता है वह श्रावक है। समकित को छोड मिथ्यात्व को अपनाना श्रावक का धर्म नही है। जैन हो तों जैनी बनों हिन्दू नही। दूसरी परंपरा के पीछे मत दौड़ो। वीर प्रभु का अनुत्तर, सर्वोत्तम धर्म हाथ मे आया है इसको ही अपनाना है। हमारी आत्मा का कल्याण केवल ही केवल जिनेश्वर भगवंतो के बताए हुए मार्ग से होगा। दूसरी परंपरा में सिर्फ जन्म मरण का भटकाव है। इसलिए नम्र निवेदन है दूसरी परंपरा जो सिर्फ बाह्य क्रियाओं द्वारा भरपूर आश्रव का सेवन कर होती है। आश्रव = पाप सहित (हिंसा जनित आदि)कर्मों के आवागमन का चालु रहना। सभी वैदिक परंपरा में ज्यादा विश्वास करते हैं बनिस्बत कि जैन परम्परा में यह बहुत बडी विडम्बना है। सबसे बडा कारण हमने जैन धर्म के मूल सिद्धान्तो को समझा ही नही, अज्ञानतावश सभी कार्य चल रहे है। प्रतिक्रमण के इच्छामि ठामि पाठ मे भी कहा गया है। उस्सुतो- उत्सुत्र(सूत्र विरुद्ध) कहा हो उम्मग्गो- जैन मार्ग के विरुद्ध चला हो अकप्पो- काया अकल्पनीय कार्य किया हो अकरणिज्जो- अकरणीय (नही करने योग्य) काम किया हो। असावग- पाउग्गो – श्रावक धर्म के विरुद्ध कार्य किया हो। अब चिंतन करें और जिन धर्म में अपनी श्रद्धा को मजबूत कर मिथ्यात्व का सेवन नही करे। लौकिक पर्व में फंसकर समकित रुपी अपनी अमुल्य अतुल्य निधि को मत गंवाएं। जिनवाणी के विपरीत न्यून या अधिक लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडं । खमतखामणा सा अशोक संचेती बेंगलोर