तीर्थ यात्रा-भाग तीन
तिरुमलाई पहाड़ी तमिलनाडु में एक ऐतिहासिक स्थान है। मंदिर का निर्माण महाराज राजराज चोलन ने लगभग 1500वर्ष पहले ”करवाया था। वर्तमान में स्वामीजी श्री धवल कीर्तिजी मठ का संचालन कर रहे हैं। वहां लगभग 850 बच्चे बारहवीं कक्षा तक अध्ययन करते है। जिनकी देखभाल मठ द्वारा की जाती है। विद्यार्थियों की इच्छानुसार बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें जयपुर में धार्मिक शिक्षा के अध्ययन के लिए सहायता प्रदान की जाती है। मठ 125 से अधिक मवेशियों के साथ एक गौशाला का संचालन भी कर रहा है। मठ में लगभग 40 व्यक्तियों की क्षमता वाला एक वरिष्ठ नागरिक गृह और लगभग 60 बच्चों के लिए आगम पाठशाला भी है। सभी सेवाएं श्री एम.के.जैन जैसे दयालु व्यक्तियों द्वारा दान के माध्यम से मुफ्त प्रदान की जाती हैं। उपरोक्त सभी सेवाओं के सुगम संचालन के लिए वह नियमित रूप से भरपूर सहयोग कर रहे हैं। यह एक आदर्श मठ है जो स्थानीय जनता में मासिक राशन का वितरण, शिक्षा, वरिष्ठ नागरिकों और मवेशियों की देखभाल करके समाज की सेवा और मदद कर रहा है। मुनिजी का चातुर्मास हर वर्ष होता है। इस दौरान तीर्थयात्रियों के लिए मुफ्त भोजन और आवास की सुविधा प्रदान की जाती है। जैन समाज को ऐसे मठ बनाकर समाज की सेवा करने के बारे में सोचना चाहिए। एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में कई स्थानों पर ऐसे आदर्श मठों की स्थापना की जा सकती हैं।यात्रा के इसी क्रम में 02 नवंबर 2023 को हम तिरुमलाई से निकले और पोन्नुरमलाई पहुंचे। दिन का मध्य समय था एवं बहुत गर्मी थी। हमने अपनी सहनशक्ति की परीक्षा न लेने का निर्णय लिया और पहाड़ी पर नहीं चढ़े। तलहटी में स्थित मंदिर के दर्शन किये। इस मंदिर का अच्छे से रखरखाव किया गया हैं। पास में भोजन और आधुनिक आवास सुविधाओं वाला एक नया जैन मंदिर है ,वहां दोपहर का भोजन किया और फिर अपनी यात्रा पुनः शुरू की। हम विज़ुक्कम जैन मंदिर पहुँचे।जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि यह 1500 वर्ष से भी अधिक पुराना मंदिर है। एक दयालु भक्त ने पूरे देश में अपनी तरह का अनोखा लगभग डेढ़ किलो सोने का स्वर्ण रथ दान किया है। उन्होंने यात्री निवास का निर्माण भी किया है जिसमें लगभग 4 सुंदर सुसज्जित कमरे और एक बड़ा हॉल और रसोईघर है। यह यात्रियों को बिना किसी शुल्क के प्रदान किया जाता है। इसका अच्छे से रखरखाव किया गया है। विज़ुक्कम जैन मंदिर से हम वेल्लिमेडुपेट्टई की ओर बढ़े। अंत में मेलसीतामुर जैन मंदिर और मठ पहुंचे वहां स्वस्ति श्री लक्ष्मीसेन भट्टारक स्वामीजी और एक अन्य स्वामीजी के दर्शन किये। यात्रा प्रवास नए अनुभव के साथ काफी रोमांचकारी था। विभिन्न लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ।
भाग चार के रुप में निरंतर जारी ………… शेष अगले भाग में।
एन. सुगालचंद जैन, चेन्नई
दिनांक : 3-12-2023